केवल स्थान से व्यक्ति की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती बल्कि...

Wednesday, Mar 18, 2015 - 09:27 AM (IST)

गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थिता:।

प्रासादशिखरस्थोऽपि काक: किं गरुडायते।।

अर्थ : आचार्य चाणक्य का मत है कि व्यक्ति अपने गुणों से ही ऊपर उठता है। ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से ही ऊंचा नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए महल की चोटी पर बैठ जाने से कौआ क्या गरुड़ बन जाएगा?।।6।।

भावार्थ : कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति अपने गुणों से ही महान बनता है और सभी जगह प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। केवल स्थान से व्यक्ति की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती बल्कि पद पर किसी गुणहीन व्यक्ति के बैठ जाने से उस पद की गरिमा ही गिरती है। 

 
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