धर्मस्थलों के गुंबद का क्या है रहस्य

Sunday, Mar 01, 2015 - 09:07 AM (IST)

धर्मस्थल अर्थात मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गिरजाघर यां गुरुद्वारा वह स्थान है जहां जाकर मन को शांति मिलती है । धर्मस्थल हमारे लिए आस्था का प्रतीक हैं । धर्मस्थल जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा है और हमारे भीतर आस्था जगाते हैं । किसी भी धर्मस्थल को देखते ही हम श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर ईश्वर को नमस्कार करते हैं । वहां हमारे अंदर खोई हुई ताकत भी वापस आ जाती है और हम अपने भीतर नई शक्ति का अहसास करते हैं । हमारा मन-मस्तिष्क स्ट्रेस से फ्री हो जाता है और शरीर उत्साह से भर जाता है । धर्मस्थलों के निर्माण के पीछे है, ऐसे वैज्ञानिक कारण जो हमें प्रभावित करते हैं ।

आपने कभी विचार किया है कि जिस धर्मस्थल में आप परमेश्वर की पूजा उपासना करने जाते हैं उसका आकार गुंबद की तरह क्यों है ? हिंदू, इस्लाम, सिख और इसाई धर्म को मानने वाले लोग भी जिन मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और गिरजाघरों में जाया करते हैं उसका आकार भी क्यों गुंबदनुमा होता है । दरअसल धर्मस्थलों का निर्माण पूरी तरह वैज्ञानिक होता है । धर्मस्थलों का वास्तुशिल्प ऐसा बनाया जाता है, जिससे वहां शांति और दिव्यता रहे । धर्मस्थलों की वह छत जिसके नीचे शक्तिपुंज की स्थापना की जाती है, ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है ।

गुंबद के शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे शक्तिपुंज स्थापित होता है । गुंबद तथा शक्तिपुंज का मध्य केंद्र एक रखा जाता है । इसका मूलभूत कारण यह है कि जब हम आकाश के नीचे बैठकर ईश्वरीय उपासना करते हैं तो उससे उपन्न तरंगे ब्रह्मांड में कहीं खो जाती है और वह वापस भी हम तक नहीं पहुंचती । खुल्ले आकाश के तले हम जो प्रार्थना करते हैं वह प्रार्थना हम तक वापस लौटकर नही आती । हमारी प्रार्थना हम तक लौट सके, इसलिए इन धर्मस्थलों का आकार गुंबद की तरह निर्मित किया जाता है । धर्मस्थलों में गुंबद ठीक छोटे आकाश की तरह है जैसे आकाश पृथ्वी को चारों तरफ से छूती है उसी तरह मंदिर, मस्जिद और चर्चों में छोटा आकाश निर्मित किया जाता है । उसके नीचे आप जो भी प्रार्थना करेंगे गुंबद उसे वापस लौटा देगा।हम सभी पूरे विश्वास के साथ आप ईश्वरीय उपासना करते हैं ताकि आपकी प्रार्थना स्वीकार हो ।

दरसल आपकी प्रार्थना आपके मस्तिस्क का विचार व विश्वास है । आप जैसे सोचते और महसूस करते हैं वैसी ही तस्वीर आपके अवचेतन मन में बनती है इसलिए जब आप सोचते हैं तो यही तस्वीर आवृत्ति तरंगों के रूप में चारों ओर ब्रह्मांड में फैल जाती है और यही चीज जब आप गुंबद के नीचे करते हैं अर्थात पूरे मन के साथ अपने प्रभु का जाप करते हैं तो उससे निकली तरंगे पूरे गुंबद में गूंजती है । धर्मस्थलों का गुंबद आपकी गूंजी हुई ध्वनि को आप तक लौटा कर एक आवरण का निर्माण करता है । उस आवरण का आनंद ही अद्भुत है । अगर आप खुले आकाश के नीचे प्रार्थना करेंगे, तो आवरण निर्मित नहीं होगा और आपकी कि गई ईश्वरीय प्रार्थना ब्रह्मांड में चली जाएगी ।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

 

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