प्रेम का बंधन निराला

punjabkesari.in Sunday, Feb 15, 2015 - 01:08 PM (IST)

बंधनानि खुल सन्ति बहूनि प्रेमरज्जजुदृढ़ बंधमन्यत्।
दारुभेदनिपुणोऽपि षडंघ्रिर निष्क्रियो भवति पंकजकोशे।।


अर्थ : यह निश्चय है कि बंधन अनेक हैं, परंतु प्रेम का बंधन निराला है। देखो, लकड़ी को छेदने में समर्थ भौंरा कमल की पंखुडिय़ों में उलझकर क्रियाहीन हो जाता है, अर्थात प्रेम रस से मस्त हुआ भौंरा कमल की पंखुडिय़ों को नष्ट करने में समर्थ होते हुए भी उसमें छेद नहीं कर पाता।।17।।

भावार्थ : इस श्लोक में राजनीति के पंडित आचार्य चाणक्य ने दर्शाया है कि प्रेम का बंधन अटूट है।उसे तोडऩा अत्यन्त कठिन है।जो प्राणी इस संसार के माया-मोह में फंस जाता है वह भौंरे की तरह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।जिस प्रकार भौंरा कमल के मोह में फंसकर उसकी पंखुडिय़ों में कैद होकर अपना जीवन गंवा देता है।


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