शिव मंदिर में छिपे रहस्यों को जानें

Tuesday, Feb 03, 2015 - 08:41 AM (IST)

घटघटवासी परमेश्वर शिव ब्रहमांड के कण-कण में समाए हुए हैं।हर शहर, गांव कसबे में शिवालय सार्वधिक देखने को मिलते हैं।परमेश्वर शिव का जनजीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।ये कहीं भी विराजित हो जाते हैं।बरगद, नीम अथवा पीपल के पेड़ के नीचे,गलियों और मौहल्लों में अथवा गांव की सीमा के बाहर कहीं भी परमेश्वर शिव अपना बसेरा डाल ही लेते हैं।छोटे शिवालयों से ले कर भव्य शिव मंदिर तक हमें देखने को मिल जाते हैं ,परंतु संभवतः किसी ने भी न सोचा होगा कि शिवालयों की स्थापना में कितने तत्त्व रहस्य समाए हुए हैं।

प्रत्येक शिवालय में नंदी, कच्छप, गणेश, हनुमान, जलधारा तथा नाग जैसे प्रतीक देखे जा सकते हैं।इन सभी में सांकेतिक सूत्र हैं।इस लेख के माध्यम से आज हम अपने पाठकों को सांकेतिक सूत्र के माध्यम से बताने जा रहे हैं शिव तत्त्व के रहस्य।

महादेव वाहन नंदी: शिव के साकार रूप महादेव का वाहन है नंदी, यह सामान्य बैल नहीं।यह पूर्ण ब्रह्मचर्य का प्रतीक है।महादेव वाहन नंदी वैसा ही है जैसे हमारी आत्मा का वाहन शरीर है।परमेश्वर शिव आत्मा हैं और नंदी शरीर।नंदी के माध्यम से ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी गई है।

विष्णु स्वरूप कच्छप: भगवान विष्णु के क्रूमाव्तार परमेश्वर शिव कि सेवा में सैदेव लीन रहते हैं।शास्त्रों में कच्छप को मस्तिष्क का प्रतीक माना गया है।कच्छप कभी भी नंदी की ओर जाते हुए दिखाई नहीं देते, अपितु नंदी और कच्छप दोनों ही शिव की ओर बढ़ते दिखाई देते हैं अर्थात शारीरिक एवं मानसिक चिंतन दोनों ही आत्मा की ओर अगर्सर हो रहे हैं।

गौरिसुत गणेश: भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं।गणेश जी के हाथ में अंकुश है जो संयम की चेतावनी देता है।कमल, निर्लेप पवित्रता का, पुस्तक उच्च उदार विचारधारा का और मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक है।वे मूषक जैसे छोटे जीव को भी प्रेम से अपनाते हैं।जो भी शिवत्व की ओर बढ़ना चाहता है उसे कसौटी पर कसने के लिए द्वारपाल के रूप में गणेश जी उपस्थित हैं।

एकदश रुद्रावतार हनुमान: रामभक्त हनुमानजी का आदर्श है सेवा और संयम। ब्रह्मचर्य उनके जीवन का मूल सिद्धांत है।वे सदैव श्रीराम के सहयोगी रहे हैं।ऐसी तत्परता और सेवा भाव से ही शिवत्व की पात्रता मिलती है।हनुमानजी के आदर्श दिव्य हैं।अगर इनकी दिव्यता जीवन में न आई तो शिवमय आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकेगा।

शिव के साकार स्वरुप महादेव द्वारा धारण किए गए कमंडलु और कपाल तपस्या के संतोष के प्रतीक हैं।डमरू हमारे शरीर में समाए हुए ब्रह्म के नाद को संबोधित करता है तथा आत्मानंद का संकेत देता है।काला नाग चिर समाधि का भाव प्रदर्शित करता है।त्रिदल-विल्वपत्र, त्रिनेत्र, त्रिपुंड, त्रिशूल आदि सतोगुण, रजोगुण ,तमोगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं।शिव पर अविरल टपकती जलधारा उनकी जटा में स्थित गंगा ही है। वह ज्ञान गंगा के रूप में ब्रह्मांड से अवतरित चेतना है।ऋतंभरा, प्रज्ञा, दिव्य बुद्धि, गायत्री अथवा त्रिकाल संध्या जिसे त्रिदेव सदा उपासते रहते हैं।शिव के साथ पार्वती उनकी प्रेरणा हैं।

ध्यान दें कि शिवालय का प्रवेश द्वार सीढ़ी से कुछ ऊंचा और छोटा होता है। अर्थात निज मनमंदिर के ऊंचे सोपान पर पैर रखते समय विनम्र और सावधान रहें तथा सिर झुका कर ही शिवालय में प्रवेश करें।अहंकार का तिमिर नष्ट होगा तभी भीतर-बाहर प्रकाशमय होगा।शिवलिंग-हिमालय सा शांत ,महान, श्मशान सा शिवरूप आत्मा वाला ही भयंकर शत्रुओं के बीच में रह सकता है तथा काल रूपी सर्प को गले लगा सकता है।वह मृत्यु को कालातीत बनाकर महाकाल कहला सकता है। शिवालय के इन्हीं प्रतीकों का चिंतन कर यदि आचरण किया जाए तो व्यक्तित्व को शिवमय बनाया जा सकता है।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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