कृष्णावतार

Monday, Feb 02, 2015 - 04:54 AM (IST)

धृतराष्ट्र से विदुर की झड़प :पांडवों के चले जाने के बाद भी भीम,अर्जुन, नकुल और सहदेव की प्रतिज्ञाओं को याद करके धृतराष्ट्र हर समय दुखी रहते थे। उन्हें यह भी चिंता सताती रहती थी कि मेरे कारण ही पांडव पुत्रों के साथ अन्याय और अनर्थ हुआ है।सरासर बेईमानी से उनके राज-पाट और धन सम्पत्ति का हरण किया गया है।

समस्त कौरव और प्रजाजन यह जानते हैं इसलिए सब विरुद्ध हो उठे हैं।वे सब मेरे सामने भले ही कुछ न कहें परन्तु पीठ के पीछे सभी मुझे बुरा कहते होंगे और समय आने पर वे दुर्योधन के विरुद्ध पांडव पुत्रों की सहायता करेंगे।विदुर महापुरुष हैं।उन्होंने जो भविष्यवाणी की है क्या वह सत्य होकर रहेगी?’’ धृतराष्ट्र इन्हीं सब बातों के सोच-विचार में डूबे रहते थे।दिन-रात यही चिंता करते रहने के कारण उनकी भूख और प्यास भी गायब हो चुकी थी।

अत: एक दिन उन्होंने महात्मा विदुर को अकेले में बुला कर उनसे कहा, ‘‘भाई विदुर तुम्हारी बुद्धि महात्मा शंकराचार्य के समान शुद्ध है।तुम सूक्ष्म से सूक्ष्म और श्रेष्ठ धर्म को समझते हो।कौरव और पांडव दोनों ही तुम्हारा सम्मान करते हैं और उन सब के लिए तुम्हारा सम्मान भी सर्वविदित है।अब तुम कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे दोनों का हित साधन हो।अब पांडवों के चले जाने पर हमें क्या करना चाहिए जिससे प्रजा में फैला हुआ असंतोष दूर हो जाए।प्रजा हम लोगों से प्रेम करने लगे और पांडव भी क्रोधित होकर हम लोगों की कोई हानि न कर सकें।’’      

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