Anmol vichar: एक-दूसरे के बिना सब अधूरे हैं, ये है प्रेम की परिभाषा

Sunday, Feb 13, 2022 - 10:10 AM (IST)

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Inspirational Context: विश्वास और प्रेम एक ही है यदि हम समझ पाएं लेकिन यह समझ ही कहां आता है। हम प्रेम को कभी समझ नहीं पाते और अपने-अपने ढंग से उसकी व्याख्या करते हैं। प्रेम में, रिश्तों में नयापन जरूरी है पर नयापन खोजना पड़ता है, स्वयं पैदा नहीं होता, पैदा करना पड़ता है। यदि स्थायी रहे, एक सार रहे तो प्रेम से पीछे हटने का डर बना रहेगा, प्रेम बोझ लगने लगेगा। बोझ कौन ढोना चाहेगा। बेहतर है कि प्रेम में होने वाले परिवर्तन का स्वागत किया जाए। परिवर्तित रूप को दिल से अपनाया जाए।

What is love प्रेम है क्या ?
प्रेम में भी हमें जैविक कारण नजर आता है। यदि ऐसा है तो ईश्वर से प्रेम होने के लिए जैविक कारण कैसे काम कर रहा है? कोई बताएगा प्रेम है क्या। कई रूप हैं प्रेम के। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, मां-बाप और बड़ों का मान करना, ईश्वर के होने पर आस्था या विश्वास, छोटों से वात्सल्य, किसी अपने की परवाह, चिंतना करना क्या है ? यह प्रेम ही तो है क्या इस सबके पीछे कोई जैविक कारण है?

गुरु शिष्य को चाहता है इसमें भी कोई जैविक कारण नजर आता है ? सबके पीछे एक अहसास काम कर रहा है, अपनेपन का एहसास। किसी के अपना होने का विश्वास। ईश्वर को अपना समझिए, समझना क्या है? है ही वो अपना जरा विश्वास करके देखिए। यह विश्वास ही प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है।

प्रेम भगवान से हो, किसी इंसान से हो या किसी जीव से हो सबका एक ही स्वरूप है और वही है अपनत्व। जब हम किसी को अपना कहते हैं तो मन में एक बहुत ही सुखद भाव उत्पन्न होता है। यह भाव ही जीने की चाह पैदा करता है। जीवन बोझ नहीं लगता।
अपने दुखों, तकलीफों, रोगों और अन्य विपत्तियों को सहने की शक्ति मिलती है। किसी के प्रति चाह बुरे वक्त में एक शक्ति के रूप में हमारा साथ देती है। मन में एक भाव सदैव रहता है कि किसी का सहारा है मुझे। यही विश्वास है जिसके पीछे ईश्वरीय शक्ति काम करती है। हम जिसे चाहते हैं अपना समझते हैं उसके अंदर ईश्वर का वास होता है। यह विश्वास ही प्रेम है।

Love is God प्रेम ही ईश्वर है
धीरे-धीरे हमें हर किसी में ईश्वर की अनुभूति होने लगती है। यह अनुभूति ही विश्वास है और यह विश्वास ही प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है। प्रेम भगवान से हो ,किसी इंसान से हो बेशक किसी जीव से हो, सबका एक ही स्वरूप है और वही है अपनत्व। जब हम किसी को अपना कहते हैं तो मन में एक बहुत ही सुखद भाव उत्पन्न होता है। यह भाव ही जीने की चाह पैदा करता है। जीवन बोझ नहीं लगता। अपने दुखों, तकलीफों, रोगों और अन्य विपत्तियों को सहने की शक्ति मिलती है। किसी के प्रति चाह बुरे वक्त में एक शक्ति के रूप में हमारा साथ देती है। मन में एक भाव सदैव रहता है कि किसी का सहारा है मुझे। यही विश्वास है जिसके पीछे ईश्वरीय शक्ति काम करती है।

आप भले ही एक सजे सजाए मंदिर में बैठें, घर पर घर से बाहर या कहीं भी एकांत में लेकिन ध्यान अपने दिल में बसी मूर्ति का ही करें जिसे आप अपना ईष्ट मानते हैं। उस पर ध्यान केंद्रित करें ताकि मन इधर-उधर भटकना छोड़ दें। यह रूप ध्यान बहुत से विकारों से मुक्ति दिलाता है मन को शांत रखता है और सहज, सरल और सही रास्ते पर ले जाता है। हां भगवान शिव का पार्थिव पूजन भी किया जाता है जिसमें भगवान शिव की रोज मिट्टी की मूर्त बनाकर महामृत्युंजय जाप किया जाता है लेकिन यह शायद कर्मकांड का हिस्सा है।  

We worship our god हम अपने ईष्ट की पूजा करें
कर्मकांड का पूजन हो तो हम बहुत सारे भगवानों और देवताओं की पूजा करते हैं जो पंडित जी हमें उनका ध्यान करने के लिए कहते हैं। उस समय हमें केवल अपने ईष्ट का ध्यान ही करना चाहिए। ईष्ट चाहे कोई भी हो। यह धारणा बनी रहनी चाहिए कि हमारे ईष्ट में सभी समाहित हैं। ईष्ट के पूजन से सभी भगवानों और देवताओं का पूजन हो जाता है। हम अपने ईष्ट की पूजा करें सभी में अपने ईष्ट को देखें लेकिन किसी का अपमान न करें।

All are incomplete without each other एक-दूसरे के बिना सब अधूरे हैं
संबंध बनाने से बनते हैं और परवाह न करने से मिट भी जाते हैं। एक-दूसरे के बिना सब अधूरे हैं। सबको सबकी जरूरत होती है। दूसरों के बिना हमारी जिंदगी अधूरी है वैसे ही हमारे बिना उनकी भी। जिंदगी महज एक भाव है, एक तमन्ना है जीने की अपने लिए दूसरों के लिए। हमारे अंदर जितना समर्पण भाव होगा उतना ही सफल होगा हमारा जीवित रहना।


 

Niyati Bhandari

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