चमत्कारी सिद्ध हो सकते हैं ये दो बोल, 1 बार अवश्य करें Try

Friday, May 20, 2022 - 10:58 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Anmol Vachan: प्रेम और क्रोध मानव जीवन की दो ऐसी चरम भावनाएं हैं, जिनका हमारे मन-मस्तिष्क पर सम्पूर्ण राज चलता है। तभी तो कहते हैं कि मनुष्य प्रेम में और क्रोध में अंधा हो जाता है। वर्तमान में चिंता और भय में डूबी दुनिया में जीते हुए हम एक-दूसरे को और कुछ न सही किन्तु शुद्ध और दिव्य प्रेम की अमूल्य सौगात तो अवश्य दे ही सकते हैं, जो हमें सीधे ईश्वर से जन्मते ही प्राप्त होती है। आज इस स्वार्थी और अराजक दुनिया में नि:स्वार्थ प्रेम व स्नेह के दो बोल भी चमत्कारी सिद्ध हो सकते हैं। स्मरण रहे, दयालुता का कार्य चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो लेकिन वह कभी बेकार नहीं जाता अपितु वह हमें आंतरिक खुशी, शांति और संतुष्टि की नई ऊंचाइयों पर ले जाता है।

दूसरी ओर क्रोध एक ऐसी आत्मघातक भावना है जो जीवन में हमारे द्वारा अर्जित हर चीज को सम्पूर्ण रूप से नष्ट कर देती हैं। एक क्रोधित व्यक्ति की मन:स्थिति कभी स्थिर नहीं होती, इसीलिए उससे समझदारी की कोई उम्मीद कभी नहीं की जा सकती, क्योंकि ऐसे लोगों को पल-पल अशांति महसूस होती है।

आधुनिक समाज में रहने वाले लोगों का यह मानना है कि एक उच्च प्रतिस्पर्धी दुनिया में रहते हुए जहां पल-पल अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है, संघर्ष करना पड़ता है, वहां कभी-कभी अपना काम निकलवाने के लिए या अपनी बात किसी से मनवाने के लिए या फिर खुद के प्रति लोगों का रवैया बदलने के लिए गुस्सा करना अति आवश्यक हो जाता है।

परन्तु इन सब यत्नों के बीच हम एक महत्वपूर्ण पाठ भूल जाते हैं कि हम इस धरा पर दूसरों को बदलने के लिए नहीं आए हैं अपितु हमारा लक्ष्य अपने आप को बदलने के लिए और हमारे अपने मानसिक और भावनात्मक उत्थान के लिए होना चाहिए। 

दूसरे सभी लोग तो उनके समय और भाग्य के अनुसार एक न एक दिन बदल ही जाएंगे, उसके लिए हम किसी को मजबूर तो नहीं कर सकते लेकिन हां, हमारी नियति तो हमारे अपने हाथ में ही है।

अत: यह तो पूर्णत: हम पर निर्भर है कि हम अपने जीवन को प्रेम, शांति, पवित्रता, सुख जैसे गुणों को धारण कर सुंदर बनाने के लिए अपना समय देते हैं या विषय-विकारों से ग्रस्त जीवन में रत होकर खुद को बर्बाद करते हैं। 

याद रखें, परमात्मा तो हम सभी को सुख-शांति एवं खुशी प्राप्त करने का रास्ता दिखलाते हैं, अब सारा दायित्व हम पर है कि हम खुशी को जीवन जीने का जरिया बनाएं और अतीत के नकारात्मक अनुभवों को पीछे छोड़ कर आगे का रुख करें। 

—राजयोगी ब्रह्मकुमार निकुंज जी 

Niyati Bhandari

Advertising