बान: विवाह की एक अनिवार्य और मजेदार रस्म

Monday, Apr 02, 2018 - 01:35 PM (IST)

नई दिल्ली: अपनी प्राकृतिक सुंदरता और देवस्थलों के कारण आकर्षण का केंद्र उत्तराखंड अपनी कुछ खास परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध है, जिनमें विवाह के समय दूल्हा और दुल्हन को दिए जाने वाले ‘बान’ की रोचक प्रथा भी शामिल हैं जिसके बिना वहां विवाह की रस्में पूरी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ‘बान‘, ‘बाना’ या सामान्य शब्दों में कहें तो ‘हल्दी हाथ’ बारात जाने से पहले की रस्म है जो दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में लगभग एक समय में निभाई जाती है। उत्तराखंड में परंपरागत ढोल दमौ और मसकबीन की धुन के बीच बान दिए जाते हैं और दूल्हा-दुल्हन को स्नान कराया जाता है। 

 

बान देने के लिए हल्दी, सुमैया, कच्चुर, चंदन आदि को कूटकर मिश्रण तैयार किया जाता है। इसे फिर सात पुड़िया में रखा जाता है जिनमें दूब को डुबाकर उसे दूल्हा या दुल्हन के पांव से लेकर सिर तक यानि पांव, घुटना, हाथ, कंधा और सिर को स्पर्श करके अपने सिर पर रखना होता है। ऐसा पांच या सात बार करना होता है। घर के सदस्य, रिश्तेदार आदि ‘बान’ देते हैं। आचार्य चंद्रप्रकाश थपलियाल ने बताया, च्च्बाना (बान) में मुख्य रूप से कच्ची हल्दी, दही, सरसों का तेल, जिराळु, सुमैया, चंदन, दूब का उपयोग किया जाता है।

 


जिस तरह से सात फेरे और सात बचन होते हैं उसी तरह से बाना भी सात ही दिए जाते हैं। यह अलग बात है कि आजकल केवल फोटो खिचवाने के लिए बाना दिए जा रहे हैं और इसलिए एक, तीन या पांच बार ही बाना देने का रिवाज शुरू हो गया है।’’ ‘बान’ अमूमन ओखली के पास दिए जाते हैं। दूल्हा या दुल्हन को चौकी (चौक या चौकली) पर बिठाया जाता है। पांच कन्याएं ओखली में सभी चीजों को कूटती हैं। इसके बाद दूल्हा या दुल्हन उसे तांबे की थाली या परात में रखी पुड़िया में रखते हैं। सबसे पहले पंंडित जी बान देते हैं। उसके बाद पांचों कन्याएं तथा बाद में मां —पिता, घर के अन्य सदस्य, रिश्तेदार और गांव वाले। बान देते समय गांव की कुछ महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। गढ़वाल और कुमांऊ में अलग अलग मंगल गान का प्रचलन है। 

 

जैसे ‘दे द्यावा ब्रह्मा जी हल्दी को बान’ या‘ उमटण दइए मइए मैल छूटाइय‘। बान देते समय या उसके बाद जीजा —साली, देवर —भाभी आदि के बीच खूब हंसी ठिठोली भी चलती है। एक दूसरे पर हल्दी लगाकर शादी के समय को खुशगवार बनाया जाता है। बान क्यों दिए जाते हैं? इसका सामाजिक, सांस्कृतिक, पारंप​रिक पहलू हो सकता है लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक सत्य भी छिपा हुआ है। पंडित चंद्रशेखर बलूणी ने कहा, ‘‘ बान नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने, ग्रह और नजर दोष के निवारण के लिए दिए जाते हैं। हल्दी शुभ होती है और हल्दी से शुभकार्य की शुरुआत करना अच्छा माना जाता है।’’ बान का वैज्ञानिक पहलू भी है। 

 

 

आयुर्वेद में हल्दी को औषधि का दर्जा दिया गया है। इस कारण हल्दी हमारी त्वचा के लिए एक तरह से प्राकृतिक वरदान के समान है। हल्दी के लगाने से त्वचा संबंधी अनेक बीमारियां से छुटकारा पाया जाता है। हल्दी का लेप शरीर की कोशिकीय संरचना को इस तरह से फैलाता है, कि इसके हर दरार और छिद्र में ऊर्जा भर सके। हल्दी इस काम में भौतिक रूप से मदद करती है। हल्दी प्राकृतिक एंटी-बायटिक होती है। हल्दी का स्नान दूल्हा और दुल्हन को तमाम रोगों से बचाने में सहायक होता है। इससे त्वचा में भी निखार आता है। शादी के समय घर में कई तरह के मेहमान आते हैं जिससे नकारात्मक ऊर्जा फैलने की आशंका रहती है। इसका दूल्हा या दुल्हन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हल्दी के बारे में कहा जाता है कि वह घर में और दूल्हे या दुल्हन के अंदर नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करने से रोकती है। हल्दी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करने में सहायक होती है।

Jyoti

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