रहस्यमयी जादुई तोते की ये कथा, आपको भी कर देगी हैरान

Monday, Sep 07, 2020 - 03:52 PM (IST)

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Amazing Parrot Story In Hindi: सुदूर दक्षिण में एक अद्भुत दुर्ग था। नाम था छत्तीसगढ़। उसके बारे में कहा जाता था कि उस दुर्ग में छत्तीस छोटे-छोटे दुर्ग थे। इतने सारे दुर्गों के फाटक केवल छह ही थे। उनमें भी एक विशेषता थी। यदि एक फाटक पर खड़े होकर कुछ कहा जाता तो उस बात को दीवारें पकड़ लेती थीं। उसे छहों फाटकों पर सुना जा सकता था। उस दुर्ग में राजा सूर्य कुमार रहते थे। दुर्ग की रक्षा के लिए यूं तो हजारों सैनिक तैनात थे किंतु रक्षा का असली भार एक तोते पर था। वह तोता राजा का मित्र और सलाहकार भी था। मनुष्य की तरह उसे कई भाषाएं आती थीं। वह छत्तीसगढ़ में बने एक पिंजरानुमा महल में अकेला ही रहता था।



तोते को आगे घटने वाली सारी बातों का पता चल जाता था और वह तुरन्त राजा को अच्छी-बुरी घटनाओं की सूचना दे देता। कई बार तो तोते ने राजा को सेनापति, मंत्री और दूसरे शत्रुओं के षड्यंत्र से बचाया। राजा तोते के अलावा न किसी से सलाह लेता, न किसी की बात मानता। परिणाम यह हुआ कि राजा के मंत्री और सेनापति तोते के दुश्मन बन गए। महारानी को तो तोता फूटी आंखों नहीं भाता था। उसी के जाल में फंस कर राजा राजमहल में बहुत कम आते। आते तो चिंताओं से घिरे हुए।

सभी तोते से परेशान थे मगर कुछ कर नहीं पाते थे। जो भी षड्यंत्र रचते, तोते को उसका पता चल जाता। फिर षड्यंत्र में शामिल होने वालों को राजा का कोपभाजन बनना पड़ता। तोता जिस महल में रहता था, इसमें जाने का रास्ता भी राजा के अलावा कोई नहीं जानता था। छत्तीसवें दुर्ग में कहीं यह महल था। छत्तीस दुर्गों के केवल छह रास्ते और उन पर सैनिकों का कड़ा पहरा। फिर भी जरा-सी बात तोते के कानों में पहुंच जाती। ऐसे में तोते को वश में करना या उसे मौत के घाट उतार देना क्या सरल था।

एक दिन महारानी ने मंत्री को बुलवाया। बड़ी सावधानी बरती। उन्हें डर था, कहीं राजा को पता न चल जाए इसीलिए मंत्री महल के गुप्त रास्ते से आया था। महारानी ने कहा, ‘‘मंत्री जी, इतने सारे गुप्तचर हमारे पास हैं। तोते का पता नहीं लगा सकते?’’

मंत्री बोला,, ‘‘आप ठीक कह रही हैं। मैं जल्दी ही कुछ न कुछ करूंगा।’’

महारानी बोली, ‘‘मगर इस विपत्ति से छुटकारा किस तरह मिल सकता है?’’

‘‘तोता जिस महल में रहता है, वहां राजा जाते हैं या एक दासी। सुना है, तोते को खाना खिलाने और उसकी देखभाल करने की सारी जिम्मेदारी उसी की है। वह किसी तरह आपके महल में आ जाए तो काम बन जाए।’’ मंत्री ने कहा।

रानी बोली, ‘‘मैं उसका पता करूंगी।’’



मंत्री खुश था। वह तो चाहता ही था कि महारानी से सांठगांठ हो, तो राजा का तख्ता पलटने का षड्यंत्र रचे।

घर लौट कर राजा बनने की कल्पना में खोया मंत्री बिस्तर पर लेटा ही था कि पंखों की फडफ़ड़ाहट सुनकर चौंका। देखा तो खिड़की पर तोता बैठा था। वह कुछ करता, उससे पहले ही तोता कागज का एक पुर्जा गिराकर नौ दो ग्यारह हो गया।

मंत्री घबरा कर उसे पढऩे लगा। लिखा था, ‘‘बुराइयों से बचो। जो बोलो, सोच-समझकर। तुम्हारे चार कानों की बात छह कानों में पहुंच चुकी है।’’

पढ़कर मंत्री का बुरा हाल। जो भय था, वही हुआ। तोता सारा भेद पा गया।

इधर महारानी ने अपनी एक दासी को बुलाया। उसे धीरे से सारी बात समझाई।

दासी ने सोचा, ‘‘अपनी लड़की और उसकी सहेली को महल में छोड़ दूंगी। वह उस दासी से हिल-मिल जाएंगी। किसी तरह फुसलाकर महारानी के पास ले जाएंगी।’’ यह सोच उसने अपनी बेटी और उसकी सहेली को बुलाया। ढंग से कपड़े पहनाए।  फिर उन्हें लेकर रात के अंधेरे में चल पड़ी। छत्तीसवें द्वार पर पहुंची।

तब तक चांद निकल आया था। अंधेरा थोड़ा घुल गया था। दासी ने देखा-सामने ही दूधिया रंग का महल था। वह पहचान गई। अपनी लड़की और उसकी सहेली को समझा-बुझा कर लौट गई।

दोनों लड़कियां महल के पास पहुंच, इधर-उधर घूमने लगीं। उन्हें अंदर जाने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।  तभी एक लड़की ने खिड़की में बैठे एक साधु को देखा। अपनी सहेली के कान में कहा ,‘‘हमें कोई देख रहा है।’’

वह इतना ही कह पाई थी, तभी उनके पास एक तीसरी लड़की आई जो तोते के महल में रहती थी। बोली, ‘‘मैंने तुम्हारी बात सुन ली। बात छह कानों में पहुंच गई। चलो, बाबा बुला रहे हैं।’’

बेचारी घबराई मगर कोई चारा नहीं था। जादू जैसी शक्ति से वे खिंची चली गईं। मंत्री भी चुप न बैठा था। वह अपने विश्वासपात्र गुप्तचरों के साथ महल के पास एक ओर छिपा हुआ था।

दोनों लड़कियों ने देखा कि उस तीसरी लड़की ने दीवार पर हाथ फेरा। तभी एक दरवाजा खुलता नजर आया। दरवाजा खुला। फिर आवाज आई, ‘‘मंत्री जी, आप भी अंदर पधारें।’’

मंत्री सुनकर सकपकाया और कोई चारा न देख, वह भी चल पड़ा।


अंदर आकर मंत्री ने देखा, राजा एक साधु के पास बैठे हैं। दोनों लड़कियां एक कोने में खड़ी हैं। तभी साधु ने मुस्कुरा कर मंत्री से कहा, ‘‘राजा का तख्ता पलटना इतना आसान नहीं। हां, बात चार कानों में रहती तो तुम मेरी पहुंच से बाहर होते मगर तुम्हारे षड्यंत्र की हर बात, हर बार छह कानों तक पहुंची। जानते हो, वे दो कान किसके थे? वे मेरे ही थे। मेरे दोनों कान छत्तीसगढ़ में घूमते रहते हैं’’
मंत्री ने आश्चर्य से देखा सचमुच साधु के कान थे ही नहीं। तभी हवा में उड़ते हुए दो कान आए और साधु के चेहरे से चिपक गए। यह देख मंत्री भयभीत हो उठा।

राजा चुप थे।  साधु बोला, ‘‘महाराज, महारानी को भी बुला लिया जाए।’’

‘‘जैसा चाहें।’’ राजा ने कहा।

साधु ने हवा में हाथ हिलाए। उसी समय सोती हुई महारानी का पलंग हवा में तैरता हुआ वहां आ गया। महारानी ने आंखें खोलकर देखा तो देखती रह गई। कुछ समझ में न आया।

साधु कहने लगा, ‘‘महारानी जी, आप तोते को मारना चाहती थीं मगर क्यों ? तोता न होता तो आपका छत्तीसगढ़ अब तक धूल में मिल गया होता। इस पर संकट था। अब कोई भय नहीं। राजा आपको वापस मिल गया, तोता अब विदा लेता है।’’

कहते हुए साधु ने हवा में हाथ हिलाए। देखते-देखते एकदम से उसका शरीर तोते में बदल गया।

तोता उड़कर महल की एक मीनार पर जा बैठा। सभी ने देखा, उसके बैठते ही वह मीनार नीचे गिर गई। फिर उसमें से काला-काला धुआं उड़कर आकाश में खो गया। तोता उड़कर कहीं चला गया।

महारानी आश्चर्य से राजा की ओर देख रही थी। राजा ने कहा, ‘‘वह साधु, एक योगी थे। अब कोई भय नहीं।’’

मंत्री ने यह देखा, तो राजा के पैरों पर गिर पड़ा। अपने किए के लिए क्षमा मांगने लगा मगर राजा ने उसे क्षमा नहीं किया। षड्यंत्र रचने के अपराध में उसके दोनों कान काट कर देश से निकाल दिया।

Niyati Bhandari

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