अमावस्या: मृत आत्माओं के लिए दें पंचबलि

Wednesday, Dec 28, 2016 - 03:20 PM (IST)

सनातन संस्कृति के अनुसार वंशजों का यह कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता और पूर्वजों के निमित्त कुछ ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत आत्माओं को परलोक में अथवा अन्य योनियों में भी सुख की प्राप्ति हो सके। अमावस्या विशिष्ट काल है, जिसमें पितृगणों के लिए तर्पण किए जाते हैं। 

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अमावस्या के दिन पूर्वमुखी होकर हाथ में तिल, त्रिकुश और जल लेकर यथाविधि संकल्प कर पंचबलि देकर दानपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पंचबलि का अर्थ है पंच अलग-अलग तरह के दान कर्म जो श्राद्धकर्ता पितृगणों के निमित कर्ता है।


गो-बलि: यह दान पितृ के निमित गाय को दिया जाता है। भोजन को पत्ते पर रखकर मंडल के बाहर पश्चिम की ओर 'ॐ सौरभेय्य: सर्वहिता:' मंत्र पढ़ते हुए गो-बलि पत्ते पर दें तथा 'इदं गोभ्यो न मम्' ऐसा कहें।


श्वान-बलि: यह दान पितृ के निमित कुत्ते को दिया जाता है। भोजन को पत्ते पर रखकर यज्ञोपवीत को कंठी कर 'द्वौ श्वानौ श्याम शबलौ' मंत्र पढ़ते हुए कुत्तों को दान दें 'इदं श्वभ्यां न मम्' ऐसा कहें।


काक बलि: यह दान पितृ के निमित कौवे को दिया जाता है। अपसव्य होकर 'ॐ ऐद्रेवारुण वायण्या' मंत्र पढ़कर कौवों को भूमि पर अन्न दें। साथ ही इस मंत्र को बोलें–'इदं वायसेभ्यो न मम्'।


देवादि बलि: यह दान पितृ के निमित देवताओं को दिया जाता है। सव्य होकर 'ॐ देवा: मनुष्या: पशवो' मंत्र बोलेते हुए देवादि के लिए अन्न दें तथा 'इदमन्नं देवादिभ्यो न मम्' कहें।


पिपीलाकादि बलि: यह दान पितृ के निमित पेड़-पौधों में रहने वाले कीटों को दिया जाता है। सव्य होकर 'पिपीलिका कीट पतंगकाया' मंत्र बोलते हुए थाली में सभी पकवान परोस कर अपसभ्य और दक्षिणाभिमुख होकर निम्न संकल्प करें- 'अद्याऽमुक अमुक शर्मा वर्मा, गुप्तोऽहमूक गोत्रस्य मम पितु: मातु: महालय श्राद्धे सर्वपितृ विसर्जनामावा स्यायां अक्षयतृप्त र्थमिदमन्नं तस्मै। तस्यै वा स्वधा।'


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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