संत तुकाराम: सदैव स्वभाव में नम्रता व चित्त में शांति का रखें वास

Saturday, Mar 03, 2018 - 10:59 AM (IST)

तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक ग्राम में शके 1520; सन्‌ 1598 में हुआ। इनकी जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शके 1520 में जन्म होना ही मान्य प्रचलित है। संत तुकाराम को तुकाराम के नाम से भी जाना जाता है, यह एक महान संत कवि थे जो भारत में लंबे समय तक चले भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ थे।


संत तुकाराम द्वारा शिष्य को नम्रता का पाठ सिखाना-
प्राचीन समय की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में ध्यान में बैठे थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से जरा क्रोधी था। वो उनके समक्ष आया और उनसे कहा, "गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाएं रहते हैं न आप किसी पर क्रोध करते हैं और न ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं। कृपया आप मुझे अपने इस धैर्य भरे व्यवहार का रहस्य बताइए।" 


संत बोले, "मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूं!”

“मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?”शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।

संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले, ”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो।” 

कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।


उस समय से शिष्य का स्वभाव बिल्कुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी सही तरह बात नहीं की व अपने गलत व्यवहार के लिए उनसे क्षमा मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आया। शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला,“गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिए!”

संत तुकाराम ने शिष्य से कहा, “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। परंतु तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारे पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?” 

शिष्य तत्परता से बोला, “नहीं-नहीं, बिल्कुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गंवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी।”

संत तुकाराम मुसकुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूं कि मैं कभी भी मर सकता हूं, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूं और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।”


शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था बढ़ गया।, उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ने का फैसला किया।


सार
इसी प्रकार हमारा जीवन है। हमें नहीं पता कब हम इस नश्वर शरीर का त्याग कर देंगे। इसलिए हमें हर एक के साथ प्रेमभाव बना कर रखना चाहिए। हमेशा अपने स्वभाव में नम्रता और चित्त में शांति का वास रखना चाहिए। 
 

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