पृथ्वी पर कैसे हुई आंवला की उत्पत्ति, इसके रहस्य से रूबरू हैं आप?

Monday, Nov 04, 2019 - 05:56 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है जिसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। बता दें इस बार अक्षय नवमी का ये पर्व 05 नवंबर यानि मंगलवार को पड़ रहा है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का अधिक महत्व है। लेकिन इसके पीछे का असल कारण शायद ही किसी को पता होगा कि आखिर आंवला नवमी है क्या, इसे मनाने का मुख्य कारण क्या और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई थी। अगर नहीं तो आइए हम बताते हैं आपको इससे जुड़ी एक और पौराणिक कथा के बारे में जिसमें विस्तारपूर्वक आंवले की उत्पत्ति के बारे में- 

कैसे हुई आंवला की उत्पत्ति-
मान्यता के अनुसार जब पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब ब्रह्मा जी ने कमल पुष्प में विराजमान होकर परब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। वह अपनी कठिन तपस्या में लीन थे। तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे। कहा जाता है ब्रह्मा जी के इन्हीं आंसुओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया और यह एक लाभकारी फल हुआ।

संतान प्राप्ति के लिए आंवला नवमी पूजा
महिलाएं संतान की मंगलकामना के लिए यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं। महिलाएं आंवला नवमी के दिन संतान की सलामती की कामना करती हैं। आंवला नवमी का बहुत महत्व है जिसका शास्त्रों में वर्णन हैं।

महत्व
एक अन्य धार्मिक कथा के अनुसार 1 कोढ़ी महिला को कोढ़ से मुक्ति के लिए गंगा ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करनो को कहा था। जिसका पालन करते हुए महिला ने इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था। इस उपाय को करने से वह रोगमुक्त हो गई थी। माना जाता है इस व्रत व पूजन के प्रभाव से वह महिला न केवल ठीक हुई बल्कि कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। कहा जाता है इसी के बाद हिंदुओं में यह परंपरा का प्रचलन शुरू हुआ था।

Jyoti

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