अकबर को महाबली कहलाना बहुत पसंद था, मगर वास्तव में महाबली कौन है? तुलसीदास या अकबर?
punjabkesari.in Sunday, Feb 18, 2024 - 09:25 AM (IST)

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नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): महाबली नाटक सत्ता और कला के बीच के संबंधों पर आधारित है। नाटक के लक्ष्य को स्पष्ट करता है इसका अंतिम भाग। जहां मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास के संवाद हैं। सपने में की गई यह बातचीत सत्ता और कला के संबंधों को दिखाती है। इस बातचीत में तुलसीदास सम्राट अकबर को महाबली कह कर पुकारते हैं। इस नाम से उन्हें अब्दुल रहीम खानखाना पुकारते हैं, वहीं, अकबर तुलसी को गोस्वामी कह कर पुकारते हैं और उनसे सीकरी न आने की वजह जानना चाहते हैं। यहां सत्ता संस्कृति पर व्यंग्य प्रहार साफ देखा जा सकता है। इसी अंश में सत्ता और कला के संबंध को दिखाया गया। नाटक में पात्रों का चत्रिण और चयन इस तरह से किया गया है कि आप इसे आज के समय से आसानी से जोड़ सकेंगे। श्रेष्ठ नाटककार असगर वजाहत का लिखा यह नाटक भारंगम के मंच पर शनिवार को कहा गया। जिसका निर्देशन मनोज शर्मा ने किया।
दर्पण गोरखपुर (यूपी) समूह के कलाकारों ने इसको मंच पर गढ़ा। नाटक में अगर भाषा पर ध्यान दें तो असगर वजाहत के महाबली की भाषा पात्रों के चरत्रि से न्याय करती है। कहीं भी कोई भी चरित्र अपनी भाषा की परिधी को पार नहीं करता और न ही उससे पीछे रहता। चरित्रों और पात्रों को जीवंत बनाने में भाषा पूरी तरह से खरी उतरी है। संवादों को और भी प्रभावी बनाने के लएि लोकोक्तयिों का सटीक इस्तेमाल भी किया गया है। नाटक को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता जिससे सिद्ध हो कि दोनों कभी मिले थे, लेकिन नाटक में कल्पना की गई है।
स्वप्न में तुलसीदास और अकबर एक दूसरे से मिलते हैं। इस दृश्य में कला और राजसत्ता के संबंधों की चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य यह उभार कर सामने लाना था कि राजसत्ता समय और काल की सीमाओं में होती है, जबकि कवि इन सीमाओं को पार कर जाता है। सम्राट इतिहास की किताबों में बंद रहता है जबकि कवि अपनी मृत्यु के सैकड़ों साल बाद भी समाज में जीवित रहता है। अकबर को महाबली संबोधन बहुत पसंद था। लेकिन वास्तव में महाबली कौन है? तुलसीदास या अकबर? निश्चित रूप से समय और काल की सीमाओं को पार कर जाने वाला ही महाबली होता है।