Ahoi Ashtmi 2020: जानिए मुहूर्त, पूजन विधि और इससे जुड़ी अन्य खास बातें
Sunday, Nov 08, 2020 - 08:25 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
करवाचौथ के व्रत की धूम देश भर में खूब देखने को मिली, कार्तिक मास की चतुर्दशी को मनाया गया है। अब बारी है अहोई अष्टमी की। जी आज, यानि करवाचौथ के ठीक 4 दिन बाद यानि कार्तिक मास की अष्टमी तिथि केअहोई अष्टमी माता का व्रत मनाया जाता है। ये व्रत संतान प्राप्ति व उनकी दीर्घायु के लिए किया जाता है। करवाचौथ की तरह ही इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं, शाम को तारों का अर्घ्य देने के बाद व्रत को पूर्ण करती हैं। हालांकि कुछ जगहों पर महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देकर भी व्रत खोलती हैं। आइए जानते हैं क्या है इस व्रत का शुभ मुहूर्त व अन्य खास जानकारी-
शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी व्रत- 08 नवंबर से सुबह 7 बजकर 29 मिनट से शुरू होगा, जो 09 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर रहेगा।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि-
माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करें, इसके बाद अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं।
फिर शाम के समय अहोई माता के चित्र के सामने चौकी रखकर, उस पर जल से भरा कलश रखें और रोली-चावल से माता की पूजा करें। ध्यान रहे इस दौरान अहोई माता को मीठे पुए और हलवे का भोग लगाएं।
यहा जानें संपूर्ण पूजन विधि-
शाम के समय व्रत खोलने के बाद भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई माता का रंग भरकर चित्रब बनाएं।
ध्यान रहे इस चित्र के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाएं। बता दें आज कल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार अहोई माता की पूजा हमेशा संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद, तारों के निकलने के बात की आरंभ की जाती है। लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है।
अहोई माता की पूजा से पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें, तथा भक्ति भाव से पूजा करें।
इसके बाद श्रद्धा भाव से व्रत कथा सुनें और बच्चों के कल्याण की कामना करें।
कुछ जगहों पर माता की पूजा के लिए चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे आम भाषा में इसे स्याऊ भी कहा जाता है। जिसमें चांदी के दो मोती डालकर खास प्रकार से पूजन किया जाता है।
कहते हैं जिस तरह गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है, ठीक उसी तरह चांदी की अहोई डलवानी चाहिए तथा डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए।
इसके उपरांत अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें, जल से भरे लोटे पर सातिया बनाएं, 1 कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें तथा सात दाने गेंहू के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहनें।
जो बायना निकाल कर रखा हो, उसे सास की चरण छूकर उन्हें दिया जाता है।
अब चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें। इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाले के बाद किसी अन्य शुभ समय में अहोई को गले से उताकर उसका गुड़ से भोग लगाएं, तथा जल से छीटें देकर मस्तक झुका कर अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त करें।