भगवान शिव के अंगूठे ने थाम रखा है पहाड़, जानें अद्भुत व अनोखा रहस्य

Sunday, Oct 22, 2017 - 10:01 AM (IST)

भगवान शिव परम कल्याणकारी और जगतगुरु हैं, वो जगत में सर्वोपरि और सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं। भगवान शिव से संबंधित संपूर्ण भारत में बहुत सारे अद्धुत व चमत्कारी मंदिर स्थित हैं। उन्हीं में से एक राजस्थान का अचलेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर धौलपुर, राजस्थान के माउंट आबू में स्थित है। यह विश्व का ऐसा एकमात्र मंदिर है, जहां भगवान शिव तथा उनके शिवलिंग की नहीं, अपितु उनके पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। यहां भगवान शिव अंगूठे के रूप में विराजते हैं और सावन के महीने में इस रूप के दर्शन का विशेष महत्त्व है। अचलेश्वर महादेव के नाम से भारत में कई मंदिर है, जिसमें से ये सबसे अधिक प्रसिद्ध है। कहते हैं यहां आए हुए भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को "अर्धकाशी" के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। स्कंद पुराण के अनुसार "वाराणसी शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी।"


स्थिती
अचलेश्वर महादेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्थित है। अचलगढ़ का किला जो की अब खंडर में तब्दील हो चुका है। इसका निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया तथा इसे अचलगढ़ नाम दिया।


मान्यता
मंदिर में प्रवेश करते ही पंच धातु की बनी नंदी की एक विशाल प्रतिमा है, जिसका वजन चार टन है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग पाताल खंड के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इसके ऊपर एक तरफ पैर के अंंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिसे स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। यह देवाधिदेव शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है। पारंपरिक मान्यता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउंट आबू के पहाड़ को थाम रखा है, जिस दिन अंगूठे का निशान गायब हो जाएगा, माउंट आबू का पहाड़ खत्म हो जाएगा।


अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर के बाईं तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहते हैं कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।


पौराणिक कथा
पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती, गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और गाय कामधेनु ऊपर बाहर जमीन पर आ गई।


एक बार दोबारा ऐसा ही हुआ। बार-बार हो रहे इस हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्रधन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्रधन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी वद्रधन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए। उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी वद्रधन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ।

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