गुरु नानक के विचारों की आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी 5 शताब्दियां पूर्व थी

Tuesday, Nov 12, 2019 - 10:47 AM (IST)

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हम सभी सबसे बड़े धार्मिक संत श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मना रहे हैं। आज के समय में विश्वभर में शांति, भाईचारा, सद्भावना को फैलाने में  उनकी शिक्षाओं तथा विचारों की बहुत प्रासंगिकता है। तंग सोच, कट्टरता तथा हठधर्मी में आज का विश्व तेजी से बंट रहा है। हमें गुरु नानक देव जी के दर्शाए मार्ग पर चलना होगा ताकि अंधकार को दूर कर रोशनी का प्रकाश किया जा सके जोकि आज निरंतर लोगों, समुदायों तथा राष्ट्रों को अपनी चपेट में ले रहा है। श्री गुरु नानक देव जी जैसे राह दिखाने वाले संतों के संदेशों से हमारा विश्व निरंतर प्रकाशमयी होता जा रहा है। 

गुरु वह है जो उजाला फैलाता है, शंकाएं मिटाता है
उनके जैसे संत वह दे सकते हैं जो एक साधारण व्यक्ति नहीं दे सकता। उन्होंने अपनी अंतर्दृष्टि तथा विचारों के माध्यम से लोगों के जीवन को टटोला। वास्तव में 'गुरु' शब्द का अर्थ ही यही है। गुरु वह है जो उजाला फैलाता है, शंकाएं मिटाता है तथा सच का मार्ग दिखाता है। हम सभी को चाहे हम किसी भी समुदाय से या जाति से संबंध रखते हों, गुरु नानक देव जी जैसी महान शख्सियत की शिक्षाओं से बहुत ज्यादा सीखना होगा। 

गुरु नानक देव जी समानता को फैलाने वाले महान संत थे। उनके विचारों में जाति, कौम, धर्म तथा भाषा के आधार पर बंटे लोग असंगत हैं। उन्होंने कहा था कि जाति निरर्थक है जो जन्म के भेद को व्यर्थ बना डालती है। परमात्मा सभी वर्गों को आश्रय प्रदान करता है। परमात्मा का उद्देश्य जातिविहीन समाज उत्पन्न करना था जहां पर वर्गीकरण न हो।

श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से हमें यह भी महत्वपूर्ण बात सीखने को मिलती है कि हमें महिलाओं का  तथा बिना किसी लिंग भेदभाव के सबका सत्कार करना चाहिए। महिलाओं को लेकर उनका कहना था कि पुरुषों को जन्म देने वाली औरत कैसे तुच्छ हो सकती है। महिलाएं तथा पुरुष दोनों पर वाहेगुरु की अपार कृपा होती है। उनके अनुसार पूरा विश्व परमेश्वर की रचना है तथा सभी का जन्म बराबर हुआ है। सृष्टि का एक ही रचनाकार है वह है 'एक ओंकार सतनाम। 'वासुदेव कुटुम्बकम' के बारे में उन्होंने कहा कि पूरा विश्व एक परिवार है। 'तेरा-मेरा' का सवाल ही पैदा नहीं होता। इकट्ठा होकर जीवन निर्वाह करना तथा मिलकर काम करना नानक ने अपने विचारों द्वारा इस बात को समझाया। श्री गुरु नानक देव जी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उन्होंने सिख धर्म के सिद्धांतों को तैयार ही नहीं किया बल्कि यह भी यकीनी बनाया कि उनकी शिक्षाएं सभी के काम आएं। 

समानता की विचारधारा को उन्होंने लंगर का रूप दिया जहां पर सभी श्रद्धालु जात-पात, क्षेत्र तथा धर्म के भेद के बिना एक ही पंक्ति में बैठ कर एक जैसा भोजन करें। उनकी बैठक के स्थान को 'धर्मसाल' का नाम दिया गया जो पवित्र मानी गई और जिसके द्वार सभी संगतों के लिए खुले थे। ऐसे संस्थान गुरु जी की समानता की दृष्टि तथा बिना भेदभाव वाली विचारधारा को प्रकट करते हैं। गुरु नानक देव जी ने हिंदू तथा मुसलमानों में भेदभाव मिटाकर सबको बराबरी का अधिकार दिया। उनके लिए कोई भी देश-विदेश नहीं है और कोई भी व्यक्ति दूसरी दुनिया का नहीं है।

उन्होंने सर्वधर्म बातचीत पर जोर दिया 
यहां यह भी देखने वाली बात है कि गुरु नानक देव जी ने 16वीं शताब्दी में सर्वधर्म बातचीत पर जोर दिया और अपने समय के सभी मजहब के लोगों से गोष्ठियां कीं। विश्व को आज ऐसे धाॢमक नेताओं की जरूरत है जो शांति, सद्भावना, सौहार्द को आगे ले जाने के लिए विचारों को बांटकर एक नई दिशा प्रदान करें। उनकी दृष्टि समग्र तथा व्यावहारिक थी। यह दृष्टि त्याग की नहीं बल्कि क्रियाशील भागीदारी की थी। 

तपस्वी तथा विलासी के जीवन को छोड़ उन्होंने गृहस्थ आश्रम का बीच का  रास्ता चुना। यानी कि उन्होंने एक गृहस्थ का जीवन चुना। यह सबसे उपयुक्त रास्ता है क्योंंकि इसमें एक व्यक्ति के लिए सामाजिक, पदार्थ तथा आध्यात्मिक वृद्धि प्राप्त करने के कई मौके हैं। उन्होंने 'किरत करो, नाम जपो तथा वंड छको' के सिद्धांत पर जोर दिया। ईमानदारी से श्रम करके तथा जरूरतमंदों में अपनी कमाई बांटकर एक व्यक्ति को अपना जीवन निर्वाह करना चाहिए। उन्होंने 'दसवंध' की प्रथा का आरंभ किया और कहा कि अपनी कमाई का दसवां हिस्सा जरूरतमंदों में बांटा जाए।


श्री गुरु नानक देव जी एक असाधारण संत थे जिन्होंने विभिन्न धर्मों तथा आध्यात्मिक परम्पराओं में समन्वय बनाकर रखा। आज मैं खुश हूं कि डेरा बाबा नानक साहिब से गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर पाकिस्तान को जोड़ने वाले कॉरीडोर जहां पर नानक ने अपने जीवनकाल के अंतिम 18 वर्ष बिताए, को लोगों के लिए  खोल दिया गया है। उनके विचारों की आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी कि 5 शताब्दियां पूर्व थी। यदि हम उनके संदेशों को अपने जीवन में अपनाएं तथा अपने विचारों तथा कार्यशैली को उनके अनुरूप ढालें तो हम यकीनी तौर पर शांति के नए विश्व को ढूंढ सकेंगे तथा विकास की डगर पकड़ सकेंगे।

Jyoti

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