शास्त्रों से जानें, क्यों नहीं खाना चाहिए Non Veg

Saturday, May 14, 2016 - 01:53 PM (IST)

मांसाहार का सेवन करना हिंदू संस्कृति में वर्जित है क्योंकि यह मनुष्य का नहीं राक्षसी भोजन है। जो तरह-तरह के अमृत पूर्ण शाकाहारी उत्तम पदार्थों को छोड़ घृणित मांस आदि पदार्थों को खाते हैं ऐसे मनुष्य राक्षस के समान होते हैं। धार्मिक ग्रंथों में जीव हत्या को पाप बताया गया है इसलिए बहुत से लोग शाकाहार का अनुसरण करते हैं।

 

सनातन संस्कृति में गौमांस को खाना पाप माना गया है क्योंकि जब भगवान विष्णु कृष्ण रूप में धरती पर अवतरित हुए तो उन्होंने गौ प्रेम से लेकर गौ भक्ति तक बहुत सी लीलाएं की जिससे पृथ्वी वासियों को गौ धन की महिमा से अवगत करवाया जा सके। गाय का दूध, घी, गोबर और गोमूत्र अनेक रोगों की एक दवा है। माना जाता है कि गाय के इन बहुमूल्य द्रव्यों को खाने से शरीर में पापों का समावेश नहीं हो पाता। श्री कृष्ण अनेकों गायों का पालन-पोषण करते तथा उन्हें मां समान पूजते तभी तो उनको गोपाल कहा जाता है।

 

ऋग्वेद में गाय को जगत माता का दर्जा दिया गया है। अनेकों पुराणों के रचियता वेद व्यास जी के अनुसार,  "गाय धरती की माता हैं और उनकी रक्षा में ही समाज की उन्नति है। गाय की  देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।"

 

महाभारत में वर्णित है, "जो व्यक्ति सौ वर्षों तक लगातार अश्वमेघ यज्ञ करता है और जो व्यक्ति मांस नहीं खाता, उनमें से मांसाहार का त्यागी ही विशेष पुण्यवान माना जाता है।"

 

मनुस्मृति में वर्णित है, "जो व्यक्ति अपने सुख के लिए निरपराध प्राणियों की हत्या करता है, वह इस लोक और परलोक में कहीं भी सुख प्राप्त नहीं करता। " इसके अतिरिक्त यदि चमड़े के पात्र में रखा घी, तेल, जल, हींग आदि खाते हैं तो भी आप शाकाहारी नहीं हैं।

 

अनजान फल, बहुत छोटा फल, जिस फल का स्वाद बदल गया हो, खट्टापन आ जाए, बासी दही, मट्ठा, वर्षा के साथ गिरने वाले ओले, द्विदल आदि शाकाहारी व्यक्ति को नहीं खाने चाहिए। इनके खाने से मांसाहार का दोष तो लगता ही है, उदर में पहुंच कर ये अनेक प्रकार के रोग पैदा कर देते हैं। हमारा धर्म हमें जो खाने की अनुमति देता है वो सब भक्ष्य है हमारे लिए शाकाहार है। चाहे वो दही हो या अंकुरित मूंग या दूध, ये सब खाकर भी आप यदि हिन्दू हैं तो शाकाहारी ही रहेंगें।

 

मनुष्य मूलतः शाकाहारी है। ज्यादा मांसाहार से चिड़चिड़ेपन के साथ स्वभाव उग्र होने लगता है। यह वस्तुतः तन के साथ मन को भी अस्वस्थ कर देता है। प्रकृति ने कितनी चीजें दी हैं जिन्हें खाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं फिर मांस ही क्यों?

 
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