निर्विचार होने के लिए न रखें ऐसे विचार, होंगे अद्भुत दर्शन

Saturday, Jun 25, 2016 - 02:23 PM (IST)

जिसे निर्विचार होना हो उसे व्यर्थ के विचारों को लेना बंद कर देना चाहिए। इसकी सजगता उसके भीतर होनी चाहिए कि वह व्यर्थ के विचारों का पोषण न करें, उन्हें अंगीकार न करें, उन्हें स्वीकार न करें और सचेत रहे कि मेरे भीतर विचार इकट्ठे न हो जाएं। इसे करने के लिए जरूरी होगा कि वह विचारों में जितना भी रस हो, उसको छोड़ दें।

 

यह संभव होगा विचारों के प्रति जागरूकता से। अगर हम अपने विचारों की धारा को दूर खड़े होकर देखना शुरू करें तो क्रमश: जिस मात्रा में आपका साक्षी होना विकसित होता है, उसी मात्रा में विचार शून्य होने लगते हैं।

 

विचार को शून्य करने का उपाय है विचार के प्रति पूर्ण सजग हो जाना। जो व्यक्ति जितना सजग हो जाएगा विचारों के प्रति, उतने ही विचार उसी भांति उसके मन में नहीं आते, जैसे घर में दीया जलता हो तो चोर न आएं और घर में अंधकार हो तो चोर झांके और अंदर आना चाहें।

 

भीतर जो होश को जगा लेता है, उतने ही विचार क्षीण होने लगते हैं। जितनी मूर्छा होती है भीतर, जितना सोयापन होता है भीतर उतने ज्यादा विचारों का आगमन होता है। जितना जागरण होता है उतने ही विचार क्षीण होने लगते हैं।

 

कभी घंटे भर किसी एकांत कोने में बैठ जाएं और कुछ भी न करें, सिर्फ विचारों को देखते रहें। कुछ भी न करें उनके साथ, कोई छेड़छाड़ न करें सिर्फ उन्हें देखते रहें और देखते-देखते ही धीरे-धीरे आपको पता चलेगा कि वे कम होने लगे हैं। देखना जैसे-जैसे गहरा होगा, वैसे-वैसे वे विलीन होने लगेंगे। जिस दिन देखना पूरा हो जाएगा, जिस दिन आप अपने भीतर आर-पार देख सकेंगे, जिस दिन आपकी आंख बंद होगी और आपकी दृष्टि भीतर पूरी होगी, उस दिन आप पाएंगे कि कोई विचार का कोलाहल नहीं है। जब वे चले गए होंगे, उसी शांत क्षण में आपको अद्भुत दर्शन, अद्भुत आलोक होगा, वह अनुभव ही सत्य का दर्शन है और वही अनुभव स्वयं का दर्शन है। स्वयं के माध्यम से ही सत्य जाना जाता है और कोई द्वार नहीं है।

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