वैष्णव की पहचान करने के लिए पढ़ें, सत्य कहानी

Monday, Jun 27, 2016 - 03:13 PM (IST)

श्री चैतन्य महाप्रभु जी के एक भक्त थे श्रीधर पंडित। आपने दरिद्रता की लीला की थी । श्रीमहाप्रभु की नवद्वीप लीला के समय आप केले के फूल और केले के पेड़ के भीतर के डण्डे को बेचकर जीवन-यापन करते थे। बंगाल में इसकी सब्जी बनाई जाती है।  

आप सत्यवादी थे, व सब्जियों का सही मूल्य ही बताते थे। यह बात सभी जानते थे। किन्तु श्रीमहाप्रभु जी, श्रीधर जी के पास आकर आपके बताए मूल्यों का आधा देकर आपसे केला, इत्यादि खींचातानी, छीता-झपटी करके ले जाया करते थे। श्रीमहाप्रभु आधा मूल्य बताकर सब्जी उठा लेते थे और श्रीधर जी उठ कर वह सब्जी श्रीमहाप्रभु के हाथ से खींच लेते थे। तब ऐसा दृश्य बनता कि आप लौकी इत्यादि की सब्जी को अपनी ओर खींचते तो महाप्रभु जी अपनी ओर इस प्रकार भक्त और भगवान आपस में प्रेम की खींचातानी करते रहते। 
 
एक बार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रीवास आंगन में अपने भक्त श्रीश्रीधर पंडित जी को अपना ऐश्वर्य रूप दिखाया व मनोवांछित वर मांगने के लिए कहा। श्रीधर जी ने कहा,  'यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो वे वर दिजिये कि जो ब्राह्मण मुझ से सब्जी छीनने के लिए आया करता था, वह ब्राह्मण ही मेरा जन्म-जन्मान्तर का नाथ बन जाए। जिस ब्राह्मण के साथ मेरा प्रेम भरा झगड़ा होता था, उनके चरण-कमल ही मेरे पूज्य रहें। '
 
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी इस प्रसंग को समझाते हुए कहते हैं कि दुनियावी ज्ञान से या बाहरी परिचय से वैष्णव का स्वरूप पहचानना असम्भव है। अधिक धन रहने से ही अधिक वैष्णवता होगी, ऐसा नहीं है। अधिक लोगों को इकट्ठा कर पाने से ही वे अधिक वैष्णव हो सकेंगे, ऐसा भी नहीं है। शास्त्रादि में अधिक पाण्डित्य प्राप्त करने से वे विष्णु-भक्त हो जाएंगे, ऐसा भी नहीं है। उनका अधिक तर्क-वितर्क रूप पांडित्य का अधिकार नहीं भी हो सकता है, किन्तु वे इन सब विषयों से क्यों उदासीन हैं, इसे साधारण लोग नहीं समझ सकते। 
 
वास्तविकता तो यह है कि श्रीचैतन्य महाप्रभु के भक्त, धन- जन-पांडित्य की अपेक्षा, श्रीचैतन्य महाप्रभु जी को ही अधिक मानते हैं। 
 
श्रीचैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com
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