भ्रम, दुख एवं भय से बचने के लिए इस एक बात को हमेशा दिमाग में रखें...

Monday, Nov 23, 2015 - 04:26 PM (IST)

रात्रि का अंधकार वातावरण को अपने आवरण में छुपाने लगा था। संध्या प्रार्थना के बाद गुरु ने अपने प्रधान शिष्य को पुस्तक सौंपते हुए आज्ञा दी कि इसे आश्रम के भीतर रख आए।

शिष्य पुस्तक लेेकर भीतर गया किन्तु तत्काल लौट आया और घबराए स्वरों में बोला, ‘‘भीतर सांप है गुरुदेव।’’
 
‘‘कोई बात नहीं।’’ गंभीरता से गुरुदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सांप कीलने का मंत्र बतलाता हूं, तुम भीतर जाकर इस मंत्र का उच्चारण करो। सांप अपने आप भाग जाएगा।’’
 
शिष्य ने वैसा ही किया, थोड़ी देर बाद वापस आया और बोला, ‘‘गुरुदेव, सांप तो अपनी जगह से हिला भी नहीं।’’ 
 
‘‘कोई बात नहीं, हो सकता है मंत्र को तुमने श्रद्धा से नहीं जपा होगा। जाओ और मंत्र को मन लगाकर दोबारा उसका जाप करो।’’
 
‘‘जो आज्ञा।’’ कह कर शिष्य फिर भीतर चला गया।
 
‘‘सांप तो ज्यों का त्यों पड़ा है गुरुदेव।’’ शिष्य ने आकर कहा। 
 
‘‘ओह! गुरुदेव ने कहा, ‘‘तुम दीपक लेकर भीतर जाओ, वह भाग जाएगा।’’
 
शिष्य दीपक लेकर भीतर गया। थोड़ी देर बाद लौट कर बोला, ‘‘भीतर सांप तो था ही नहीं, गुरुदेव। वह तो मात्र रस्सी थी किन्तु मुझे अंधेरे के कारण सांप का भ्रम हो गया था।’’
 
गुरु के मुख पर मधुर मुस्कान उभरी, ‘‘वत्स, यह भ्रम जाल ही सत्य पर असत्य का भ्रमात्मक आवरण है। यह भ्रम तब तक दूर नहीं हो सकता, जब तक ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश हमारे पास न हो। अत: यदि भ्रम, दुख एवं भय से बचना हो तो ज्ञान के प्रकाश को निरंतर बढ़ाते रहना आवश्यक है।
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