इस प्रकार की सोच रखने वाले आज भी नहीं हैं स्वतंत्र

punjabkesari.in Sunday, Aug 14, 2016 - 04:05 PM (IST)

69वें स्वातंत्र्य दिन के इस अवसर पर स्वयं से प्रश्न करें, क्या आप स्वतंत्र हैं? स्वतंत्रता होती क्या है? क्या केवल लाल किले पर तिरंगा लहराना स्वतंत्रता है? या केवल अपने आप को भारतीय कहना ही स्वतंत्रता है?

 

हां आज से 69 वर्ष पूर्व, जिन्होंने हमारे देश को अत्याचारी विदेशी शासन से आजादी दिलाने हेतु अपना जीवन न्योछावर कर दिया, उनके लिए स्वतंत्रता का सही अर्थ यही था परंतु जहां तक आपका सवाल है, आप पर अभी भी राज्य किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि शासक का रूप बदल गया है। आज के दौर में शासक लोग नहीं, शक्ति है। जिस इंसान के पास शक्ति होती है, वह अपने निजी लाभ हेतु उन शक्तियों का प्रयोग करता है तथा जो उस शक्तिशाली इंसान के दबाव के अधीन हो जाते हैं, वे भी अपने निजी स्वार्थ के सुरक्षा हेतु ही ये करते हैं। ज़रा सोचिए, अगर अशफाकुल्लाह खान, भगत सिंह या रानी लक्ष्मीबाई ने देश के सुख की अपेक्षा अपने खुद के घर के सुखों को चुना होता, तो क्या वे स्वतंत्र हो पाते?

 

सृष्टि के साथ एकरूप होना ही वास्तव में स्वतंत्रता है। जैसे ही आप एक से दो हो जाते हैं, तो आप बंध जाते हैं। आज आपकी संख्या एक या दो नहीं बल्कि, कई अरबों में हैं।दुनिया में कम से कम पांच हजार भिन्न सम्प्रदाय हैं और उन सम्प्रदायों के भीतर भी हर सदस्य की सोच दूसरे की अपेक्षा भिन्न होती है। जिसके कारण वे आपस में भी भिड़ते रहते हैं। आज के ज़माने में, जब आपके पड़ोसी के घर में चोरी हो रही होती है तो आप अपने घर के दरवाजे बंद कर देते हैं। आप दुःख-दर्द से व्यथित पशु के रुदन को अनसुना कर देते हैं। आप धरती मां के दर्द को अनदेखा कर देते हैं। यहां तक कि आप उन लोगों से या चीजों से भी प्रेम नहीं करते जो आपके सबसे करीब होती है। आप केवल खुद से प्रेम करते हैं। आप बस दूसरों पर कब्जा करके, उन पर अपने आनंद व समाधान के लिए राज करने की इच्छा रखते हैं। आप सदैव इस डर से त्रस्त रहते हैं कि अगर आप किसी और के लिए कुछ करेंगे तो आपको आपके निजी लाभ को त्यागना पड़ेगा। यही डर आपको आपकी स्वतंत्रता का उचित उपयोग नहीं करने देता और इस डर की असली वजह यही है कि आपने अपने निजी लाभ को सृष्टि के हित से पृथक कर दिया है। आपने स्वयं के चारों तरफ दीवारें बना दी है। इसी कारण आप स्वतंत्र नहीं हैं, आप इन दीवारों के भीतर कैद हैं।

 

सृष्टि से प्रेम करना ही हर इंसान का धर्म होता है| दुनिया के सारे सम्प्रदाय केवल किसी एक इंसान या सम्प्रदाय या संस्था की सेवा करने के लिए नहीं बल्कि पूरी सृष्टि की सेवा करने और दान करने को महत्त्व देते हैं| धर्म का योग्य अर्थ केवल विशिष्ट पद्धति के परिवेश में कुछ विशिष्ट शास्त्रविधि करना नहीं होता। आप वो सारे शास्त्रविधि इसलिए नहीं करते क्योंकि आप धार्मिक हैं बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि आप भयभीत हैं और इस औपचारिक दिखावे से अपने आप को ही आश्वस्त करते रहते हैं। ऐसा करके आप केवल खुद को ही बेवकूफ बना रहे हैं, क्योंकि ईश्वर को तो आप बेवकूफ नहीं बना सकते। आप जो कुछ भी जमा कर रहें हैं, जिस सब पर आप शासन करना चाहते हैं, वह सब क्षणभंगुर  है। यहां तक कि आपका शरीर भी शाश्वत नहीं है, और एक दिन उसका मिटना भी निश्चित है| जब आपका शरीर छोड़ने का वक्त आएगा, तो यह डर आपको स्वतंत्र होने नहीं देगा, बल्कि वह आपको एक और जन्म से बांध देगा, एक और शरीर से बांध देगा|

 

इस डर को पराभूत कर स्वतंत्र होने के लिए केवल धर्म का पालन यह एकमात्र मार्ग है। दुनिया के सारे सम्प्रदाय एक निराकार ईश्वर के विषय में ही ज्ञान देते हैं। जब वह ईश्वर एक ही है, तो उस एक ईश्वर का विचार भिन्न कैसे हो सकता है? आपकी सोच आपके पड़ोसी से, या फिर रास्ते पर भटक रहे श्वान से भिन्न कैसे हो सकती है? सृष्टि से प्रेम करिए, खुद को सीमित न करें। इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, स्वयं की सोच से मुक्ति पाने हेतु, कुछ समय निकालें।

 

योगी अश्विनी 

 www.dhyanfoundation.com


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