भविष्य की समस्याओं का करें निदान, सुख-संतोष सदा रहेंगे साथ

Friday, May 06, 2016 - 12:49 PM (IST)

हमारा धर्म किताबों और उपदेशों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। हमारी निष्ठा की झलक हमारे दैनिक व्यवहार में दिखनी चाहिए। जिससे पाया है, उसे देना सीखें। देने का अर्थ यह है कि हम जिस काबिल हों, जिस पद पर हों, जो कार्य कर रहे हों, वह ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें। 

 
मौजूदा समय में इंसान की सोच बहुत संकीर्ण व स्वार्थी हो गई है। यदि हम अपनी सोच को उदार बनाएं और जो भी कार्य करें उसे अपने देश और समाज के लाभ को ध्यान में रखकर देखें तो शीघ्र ही उसके सुखद परिणाम भी नजर आने लगेंगे।
 
हमारी कथनी और करनी में किसी भी स्तर पर फर्क न हो। दूसरों से अपना धर्म निभाने की अपेक्षा करने से पहले हम अपने धर्म यानी कर्त्तव्यों के पालन के बारे में सोचें। स्वधर्म के पालन के कई फायदे हैं। इससे हम जहां कई बुराइयों से बच जाते हैं, वहीं दूसरों की बुराई देखने और बुराई करने से भी बच जाते हैं। सफलता और असफलता के बारे में न सोचकर अपने कर्त्तव्यों के पालन के बारे में सोचना चाहिए। दूसरा हमारे लिए क्या कर रहा है, इस बात की बजाय हम दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं, यह भाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
 
किसी दुराग्रह और स्वार्थ के बगैर हम अपने स्वधर्म के पालन में लगे हों तो फिर कोई वजह नहीं कि जिंदगी की परीक्षा में विफल हो जाएं। खुशी हमें उपहार के रूप में नहीं मिलती, इसके लिए हमें प्रयास करना पड़ता है। सुख हमारे प्रयासों का फल है। जब आप दूसरों को सुख देते हैं तो निश्चित रूप से आपको सुख और संतोष मिलने लगता है।
 
 
 
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