व्यक्ति के रूप में छुपे होते हैं राक्षस, ये हैं निशानियां

Thursday, Oct 06, 2016 - 12:54 PM (IST)

इहलोक में मनुष्य अहंकारवश पाप कर्म या अनैतिक कर्म कर जाता है, जिसका फल उसे जन्म-जन्मांतर तक भोगना पड़ता है। अहंकार एक राक्षसी प्रवृत्ति है और इस प्रवृत्ति के कारण अन्य दुर्गुण भी एकत्र होकर मनुष्य को पूर्ण राक्षस बना देते हैं। 


शास्त्रों में राक्षसों का वर्णन हर युग में हुआ है। कलयुग यानी वर्तमान युग में राक्षसी प्रवृत्तियों को पहचानने के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस में कहा है कि दूसरों के हित की हानि राक्षसों की दृष्टि में लाभ है। राक्षसी प्रवृत्ति वाले लोगों को दूसरों के उजडऩे में हर्ष और बसने में कष्ट होता है। ये दूसरों के दोषों को हजार आंखों से देखते हैं और दूसरों के हित रूपी घृत में मक्खी के समान कूद जाते हैं। अहंकार के कारण ये ईश्वर के विधान पर विश्वास न करके अपने निर्णयों को सर्वोपरि मानकर दूसरों पर थोपने का प्रयास करते हैं।


राक्षसी प्रवृत्ति के कारण इनके आस-पास का माहौल बोझिल और नकारात्मक हो जाता है। यही कारण है कि संकेतात्मक रूप में पृथ्वी ने भगवान से प्रार्थना रूप में कहा भी है कि मुझे पहाड़ों, वृक्षों और किसी भी वस्तु का इतना भार महसूस नहीं होता, जितना एक राक्षस का। 


ऊपर वर्णित दुर्गुण यदि किसी मनुष्य में हैं तो उसे इस युग का राक्षस ही समझना चाहिए और कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार उसे आने वाले जन्मों में इस राक्षसी प्रवृत्ति का फल भोगना ही होगा।


अक्सर राक्षसी प्रवृत्ति का व्यक्ति अपने दुर्गुण मानने के लिए तैयार होता ही नहीं है। इसीलिए मनुष्य को स्वाध्याय के जरिए अपने अंदर झांकने का प्रयास करना चाहिए। स्वाध्याय बिल्कुल निष्पक्ष रूप में करना चाहिए, जिससे व्यक्तित्व का असली स्वरूप पता लग सके। यदि राक्षसी प्रवृत्ति के दुर्गुण किसी व्यक्ति में हैं तो उसे उन पर धीरे-
धीरे विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
 

Advertising