किसी भी व्यक्ति के अंदर के राज जानने के लिए रखें इन बातों का ध्यान

Saturday, Oct 17, 2015 - 11:06 AM (IST)

व्यक्ति का मस्तिष्क और व्यक्ति की आंखें, ये उसके पूरे चरित्र का और उसके अवचेतन मन का दर्पण होते हैं और इस दर्पण से सब दिखता है। मनुष्य मन के तल पर कई चालें चल सकता है। आपके अंदर गुस्सा है, आप नहीं दिखाओ, आप के अंदर द्वेष है, आप नहीं दिखाओ लेकिन कब तक रोकोगे? कहीं न कहीं वह निकल जाएगा। आपने बहुत कोशिश करके अपनी साधु की छवि बनाई, बहुत गंभीर साधक हैं, बहुत समझदार हैं, पर आपकी बेवकूफी कहीं न कहीं से छलक ही जाएगी क्योंकि यही तो शक्ति है अवचेतन मन की। और यह चेतन मन से बहुत ज्यादा ताकत रखती है। 

सच तो यह है कि चेतन मन की जो ताकत है, वह शायद अवचेतन मन की ताकत का, एक अंश का भी हजारवां, करोड़वां अंश होगा और जो अवचेतन मन है, वह बहुत बड़ा, विस्तृत और शक्तिशाली है। मनुष्य का जो आचरण है वह सारा चेतन मन से आ रहा है न कि अवचेतन मन से। अवचेतन मन भीतर से प्रेरणा देता है। इसलिए जैसे तुम्हारे विचार होते हैं,  वैसा तुम्हारा आचरण होगा लेकिन इसमें पूरी बेईमानी करने की संभावना है कि विचार के प्रतिकूल आप अपना आचरण बना लो लेकिन अवचेतन मन की जो शक्ति है, उसके कारण से कहीं न कहीं, कभी न कभी विस्फोट हो जाता है और आदमी की असलियत बाहर आ जाती है। मेरे हाथ में यह एक फूल है, इसको आप यहां रखो, तो भी फूल ऐसा है। 

इसको मुम्बई भेज दोगे, तब भी यह ऐसा है। ठंडक में रखें कि गर्मी से यह मरे नहीं, इसको अमरीका में भेजें, अगर सही हालत में इसको रखा जाए तो  वहां पर भी यह ऐसा ही है। यह नहीं कि यहां यह फूल है, मुम्बई जाते हुए यह कांटा हो जाएगा, या अमरीका जाते हुए यह सफेद फूल न होकर, लाल फूल हो जाएगा। ऐसा कुछ नहीं, यह जैसा है वैसा ही रहेगा।

पर मनुष्य का मन ऐसा नहीं है। मनुष्य का मन हर घड़ी रंग बदलता है और पैंतरें बदलता है। अब यह जो बदलाहट होती है यह सबसे पहले आपकी आंखों में और आपके चेहरे पर दिख जाती है। जो व्यक्ति बदल रहा है,  वह चाहे स्वयं इस परिवर्तन को न देख पाए लेकिन जो कोई उसके आसपास ज्ञानी है,  वह देख ही लेगा।

विचार से कर्म की उत्पत्ति होती है, कर्म से आदत की उत्पत्ति होती है, आदत से चरित्र की उत्पत्ति होती है और चरित्र से आपके भाग्य की उत्पत्ति होती है।  —बौद्ध कहावत

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