सच-झूठ की ''पहेली'': हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा क्यों ?

punjabkesari.in Thursday, Apr 28, 2016 - 09:53 AM (IST)

वैज्ञानिक और ऐतिहासिक आधार पर हिन्दू धर्म अर्थात वैदिक धर्म ब्रह्मांड का सबसे पुराना धर्म है। ज्ञान गंगा से भरा वैदिक धर्म अनेक रहस्यों से परिपूर्ण है। वैदिक धर्म में आदिकाल से अनेक पंथ और संप्रदाय भी विद्यमान हैं। वैदिक काल के ग्रन्थों के अनुसार आदिकाल में देव, नाग, किन्नर, असुर, गंधर्व, भल्ल, वराह, दानव, राक्षस, यक्ष, किरात, वानर, कूर्म, कमठ, कोल, यातुधान, पिशाच, बेताल, चारण आदि जातियां हुआ करती थीं। देव और असुरों के झगड़े के चलते धरती के अधिकतर मानव समूह दो भागों में बंट गए। 

 

पहले बृहस्पति और शुक्राचार्य की लड़ाई चली, फिर गुरु वशिष्ठ और विश्‍वामित्र की लड़ाई चली। इन लड़ाइयों के चलते समाज दो भागों में बंटता गया था। हजारों वर्षों तक इनके झगड़े के चलते ही पहले सुर और असुर नाम की दो धाराओं का धर्म प्रकट हुआ, यही आगे चलकर यही वैष्णव और शैव में बदल गए। लेकिन इस बीच वे लोग भी थे, जो वेदों के एकेश्वरवाद को मानते थे और जो ब्रह्मा और उनके पुत्रों की ओर से थे अर्थात ब्राह्मण संप्रदाय। 

 

शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया। इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश के धर्म) के समन्वय का कार्य भी किया। बाद में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय ‍बना जिसे स्मार्त संप्रदाय कहते हैं। इस तरह वेद से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदायों माने गए। 1. शैव, 2. वैष्णव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त व 5. वैदिक संप्रदाय। 

 

शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, वैष्णव जो विष्णु को श्रीभगवानर मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परंबा मानते हैं व स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। पांचों संप्रदाय का धर्मग्रंथ वेद ही है। सभी संप्रदाय वैदिक धर्म के अंतर्गत ही आते हैं कई प्राचीनकालीन समाजों ने स्मृति ग्रंथों का विरोध किया है। जो ग्रंथ ब्रह्म के मार्ग से भटकाए, वे सभी अवैदिक माने गए हैं।

 

अपार ज्ञान व रहस्यों से भरे वैदिक धर्म में अनेक कारण आज तक भी लोगों को ज्ञात नहीं है। मूलतः वैदिक धर्म में ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद नामक चार वेद हैं। तथा ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण ये 18 पुराण हैं। 

 

शास्त्रनुसार वैदिक धर्म में 33 कोटि देवता हैं। भ्रम के कारण लोग इन्हें 33 करोड़ मानते हैं, यह लोगो को बहुत बड़ी भूल है कि वह कोटि को यहां पर करोड़ मानते हैं।  किसी भी वैदिक ग्रंथ अर्थात वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत या किसी अन्य धार्मिक ग्रन्थ में ये नहीं लिखा कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं हैं और यही नहीं देवियों को कहीं भी इस गिनती में शामिल नहीं किया है। शास्त्रों में में 33 करोड़ नहीं बल्कि “33 कोटि” देवताओं का वर्णन हैं। ध्यान दें कि यहां “कोटि” शब्द का प्रयोग किया गया है, करोड़ का नहीं।

 

वैदिक काल में कोटि का अर्थ करोड़ नहीं परंतु प्रकार अर्थात (त्रिदशा) हेतु गया है। कोटि का एक अर्थ “प्रकार” (तरह) भी होता है। शास्त्रनुसार ब्रहमाण्ड में तीन लोक कहे गए हैं पृथ्वी लोक, वायु लोक और आकाश लोक तथा इस त्रिलोक में 33 प्रकार (कोटी) के देवता इस प्रकार हैं

12 आदित्य हैं - अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान व विष्णु।

8 वसु हैं - आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष व प्रभाष।

11 रुद्र हैं - शम्भु पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, भव, सदाशिव, शिव, हर, शर्व व कपाली। 

2 अश्विनी कुमार हैं- नासत्य व द्स्त्र अतः कुल मिलकर 12+8+11+2=33 अर्थात सभी 33 कोटी देवताओं के लिए परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य निहित किए हैं। अर्थात देवताओं के वर्गीकरण के आधार पर 33 प्रकार में विभाजित किया गया है न की 33 करोड़ रूपों में। 

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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