शास्त्रों से जानिए, गोस्वामी कहलाने का अधिकारी कौन है?
Thursday, Jun 30, 2016 - 02:24 PM (IST)
आप जगत को भक्ति का मार्ग दिखलाने वाले होने के कारण विश्वनाथ और भक्तों में श्रेष्ठ होने के कारण चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित हुए थे। आपने अपने गुरुदेव के आनुगत्य में व अपने गुरुदेव जी की असीम कृपा के बल से व्रज के विभिन्न स्थानों पर रहकर बहुत से ग्रन्थों की रचना की। वे सभी ग्रन्थ गौड़ीय वैष्णवों की परम सम्पदा हैं। आपके सभी ग्रन्थ तथा श्रीमद्भागवतम और श्रीगीता की टीकाएं अत्यन्त सरल, स्पष्ट भाषा में हैं व भक्ति रस से पूर्ण हैं।
आप श्रील नरोत्तम ठाकुर जी की शिष्य परम्परा के चौथे आचार्य हैं। एक बार श्रीरूप कविराज नामक व्यक्ति ने अतिवाड़ी नामक सम्प्रदाय चलाया और ऐसा प्रचार करने लगा कि त्यागी व्यक्ति ही आचार्य बनने का अधिकारी है, गृहस्थी नहीं। इसके अलावा उन्होंने विधि मार्ग का भी पूरी तरह से अनादर किया और इस प्रकार कहते हुए विश्रृंखलापूर्ण राग-मार्ग का प्रचार किया कि इसमें श्रवण/कीर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है।
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी ने श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध में अपनी सारार्थदर्शिणी टीका में रूपकविराज के उपरोक्त सिद्धान्तों का खण्डन करके जीवों का अत्यन्त मंगल किया। रूपकविराज का ऐसा मत था कि आचार्य के वंश में जन्म ग्रहण करने पर भी गृहस्थी के लिये कभी भी ''गोस्वामी'' शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर जी ने इसका विरोध किया और शास्त्रों की युक्तियों से सिद्ध किया कि आचार्य वंश की योग्य गृहस्थ सन्तान भी आचार्य या गोस्वामी बन सकती है। किन्तु धन और शिष्यों के लोभ में फंस कर आचार्यकुल में उत्पन्न अपनी सन्तान के नाम के पीछे ''गोस्वामी'' जोड़ना सात्वत्शास्त्रों के विरुद्ध है।
श्रीचैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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