श्री गणेश-महालक्ष्मी पूजन में रखें ध्यान, पुण्य की बजाय पाप के भागी बनेंगे

Friday, Jun 10, 2016 - 12:43 PM (IST)

शास्त्रों के अनुसार गणपति जी को महालक्ष्मी का मानस-पुत्र माना गया है। यह तो सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले गणपति का पूजन किया जाता है लेकिन इसके साथ ही गणपति के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है। 

 

महालक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन करने में संभवतः एक भावना यह भी कही गई है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी भी सदैव रक्षा करें। हमें भी उनका स्नेह व आशीर्वाद मिलता रहे। महालक्ष्मी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणपति को सदा महालक्ष्मी की बाईं ओर ही रखें। 

 

आदिकाल से पत्नी को च्वामांगीज् कहा गया है। बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है। अतः कभी भी पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि महालक्ष्मी सदा गणपति के दाहिनी ओर ही रहें, तभी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होगा।

 

घर के मंदिर में तीन गणेश प्रतिमाएं नहीं रखनी चाहिएं। मूर्त का मुंह सदा आपके घर के अन्दर की आेर होना चाहिए, पीठ कभी नहीं। उनकी दृष्टि में सुख-समृद्धि, एेश्वर्य व वैभव है जो आपके यहां प्रवेश करते हैं। पीठ में दरिद्रता होती है जो रोग, शोक, नकारात्मक ऊर्जा लाती है।

 

अत: कुछ लोग गलती से घर के द्वार या माथे पर गणेश जी की मूर्त या संगमरमर की टाइल्स लगवा लेते हैं और सारी उम्र फिर भी दरिद्र रह जाते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए उसके समानांतर उसके पीछे एक और चित्र या मूर्त एेसे लगाएं कि गणेश जी की दृष्टि निरंतर आपके घर पर रहे।

 

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