भोजन से लेकर प्रसाद बनने तक की यात्रा कैसे तय करता है अन्न, जानिए

Tuesday, Aug 30, 2016 - 09:52 AM (IST)

जैसा अन्न-वैसा मन, हमारे सारे क्रिया-व्यापार का आधार अन्न या भोजन ही है। गीता में सात्विक, राजसिक और तामसिक तीन प्रकार के भोजन की चर्चा है। प्रेम, मैत्री, प्रसन्नता, शक्ति उत्पन्न करने वाला भोजन सात्विक है। ईष्या-द्वेष, मद, तृष्णा बढ़ाने वाला राजसिक और आसुरी प्रवृत्तियों को बढ़ाने वाला तामसिक कहा गया है।  
 
अन्न को ब्रह्म कहा गया है। इसका निरादर देवता का अपमान है। इसलिए अन्न को भोजन के रूप में तैयार करने की प्रक्रिया भी पूजा-अर्चना से कम नहीं है। अन्न के खेतों से थाली तक पहुंचने की यात्रा में कई पड़ाव हैं। कमाने, पकाने, परोसने और खाने वाले व्यक्तियों की मानसिकता अन्न के पोषक तत्वों को प्रभावित करती है। रसोई बनाने वाला इस प्रसंग का सूत्रधार है। खाना बनाते समय उसकी मानसिकता क्या है, खाने वाले के प्रति उसकी भावनाएं अच्छी हैं या नहीं इन सबका प्रभाव भोजन पर होता है। अगर उसे भोजन बनाने का काम मुसीबत नजर आता है, अगर उसे भरपेट भोजन नहीं मिलता है तो निश्चित रूप से भोजन में नकारात्मक तरंगें पैदा होंगी। अच्छे से अच्छा व्यंजन भी अपाच्य बन जाएगा। 
 
घर में नौकर रखने का रिवाज या जरूरत आजकल बढ़ गई है। घर के सदस्य जो कुछ खाते हैं, वही भोजन सेवकों तक भी पहुंचना चाहिए। यदि दुर्भाव होता है तो सात्विक होते हुए भी वह भोजन मन को अशांत और रोगी बना देगा। हम अपनी दादी-नानी को याद करें तो पहले रोटी बनाते समय सिर पर दुपट्टा या पल्लू रखी छवि सामने आ जाती है। प्रेम के रस से बनाया और परोसा भोजन अमृत बनकर मन को ऊर्जा देता है। भोजन करते समय हमारे साथ यदि सज्जन और हितैषी हैं तो मन उल्लास से भर उठता है। कौर मुंह में हो और आंखें टी.वी. पर मारधाड़ वाले दृश्यों पर टिकी हों तो पेट में वात, कफ, पित्त और मन में हिंसा की भावनाएं पनपती हैं। 
 
अन्न और मन के इस रिश्ते को स्वस्थ रखने के लिए एक और कसौटी है। अन्न धर्माजित धन से प्राप्त किया जाए। दुष्ट का अन्न ग्रहण करने से दुष्टता आएगी। कृष्ण ने दुर्योधन का राजसी भोजन छोड़कर विदुर के यहां साग-रोटी खाई थी। गुरु नानक ने धनी सेठ का निमंत्रण ठुकरा कर भाई लालो के हाथ की बनी सूखी मिस्सी रोटी खाई। अमीर की रोटी में गरीब का खून था और गरीब की रोटी में दूध। वह उसकी मेहनत की कमाई से बनी थी। इस प्रकार धर्म से अर्जित अन्न अंत में ईश्वर को अर्पित करके ग्रहण करने से प्रसाद बन जाता है। 
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