बकरीद: जानिए मुस्लिम धर्म में क्या है कुर्बानी का महत्व?

Sunday, Jul 10, 2022 - 11:55 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिंदगी के सफर को पूरा करने के लिए मनुष्य को संसार में बहुत-सी चीजों की जरूरत पड़ती है, परंतु ये चीजें वह बिना किसी कुर्बानी (कुछ अर्पण किए) के प्राप्त नहीं कर सकता। मकसद जितना बड़ा होता है, कुर्बानी भी उतनी ही बड़ी होनी लाजमी है। स्लाम में मानवता की हिदायत के लिए सभी नबियों (अवतारों) और रसूलों ने कई तरह की कुर्बानियां पेश कीं और ऊपर वाले की रजा (खुशी) प्राप्त की। यहां तक कि इस्लाम के आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल.) की पूरी जिंदगी तरह-तरह की कुर्बानियों से भरी पड़ी है। वहीं हजरत इब्राहीम (अलै.) की पूरी जिंदगी लोगों को सही रास्ता दिखाने में खत्म हुई। कदम-कदम पर ईश्वर ने इनका सख्त से सख्त इम्तिहान लिया ताकि इनके दिल में खालिस ईश्वर की मोहबत बाकी रह जाए या यह कह लें कि इनको तपा-तपा कर कुंदन बनाया।

इनके घर बुढ़ापे के दिनों में बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम इस्माइल रखा गया जो बड़ा होकर अल्लाह का पैगम्बर कहलाया। ईश्वर की तरफ से हुक्म हुआ कि वह अपनी पत्नी और प्यारे बच्चे को एकांत जगह पर छोड़ दें। यह जुदाई वर्षों लम्बी थी और जब वह दोबारा इस्माइल से मिले तो वह जवान हो चुका था। पिता-पुत्र के मिलन के बाद ऊपर वाले का फिर हुक्म हुआ कि अपनी सबसे प्यारी चीज मेरे लिए कुर्बान करो। जाहिर है कि हजरत इब्राहीम (अलै.) के लिए सबसे प्यारी चीज उनका पुत्र था, परन्तु उन्होंने ईश्वर का हुक्म पूरा करने के लिए अपने बेटेको लिटा कर उसकी गर्दन पर छुरी चलाई।

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पुत्र ने पिता से कहा कि आप छुरी चलाने से पहले अपनी आंखों पर पट्टी बांध लें जिससे ठीक से हुक्म पूरा कर सको। छुरी चलाई गई और जब पट्टी खोल कर देखा तो पुत्र ठीक-ठाक था और छुरी एक दुम्बे (बकरी की किस्म) की गर्दन पर चली थी।

यह कुर्बानी ईश्वर को इतनी पसंद आई कि ईश्वर ने इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए हर साल इसकी नकल करने का हुक्म दे दिया।  कुर्बानी से शिक्षा : यह हमें मोह का त्याग करना सिखाती है। यह इंसानी दिल में ईश्वर की मोहब्बत पैदा करती है। कुर्बानी यह याद दिलाती है कि चाहे हालात कुछ भी हों, हमें बुराइयों के विरुद्ध हर किस्म की कुर्बानी देने से झिझक नहीं करनी चाहिए। इतिहास से साबित है कि बिना कुर्बानी दिए कुछ भी हाथ नहीं आता और न ही आएगा।  

Jyoti

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