Positive Thinking प्राप्त करने के लिए अपनाएं सच्ची शक्ति

Thursday, Aug 20, 2015 - 03:59 PM (IST)

डा.  राधाकृष्णन ने लिखा है, ‘‘ध्यान चेतना की वह अवस्था है जहां समस्त अनुभूतियां एक ही अनुभूति में विलीन हो जाती हैं, विचारों में सामंजस्य आ जाता है, परिधियां टूट जाती हैं और  भेद-रेखाएं मिट जाती हैं। जीवन और स्वतंत्रता की अखंड अनुभूति में ज्ञाता और ज्ञेय का भेद नहीं रहता। संकुचित जीवात्मा विराट सत्ता में विलीन हो जाता है।’’

साधारणतया ध्यान का संबंध आत्मा, ईश्वर आदि अतीन्द्रिय तत्वों के साथ जोड़ा जाता है, किन्तु लौकिक जीवन में भी उसकी उतनी ही उपयोगिता है जितनी आध्यात्मिक जीवन में। हम व्यायाम द्वारा शारीरिक शक्ति प्राप्त करते हैं। उस शक्ति को अच्छे या बुरे किसी भी कार्य में लगाया जा सकता है। 
 
वैज्ञानिक अपने दिमाग का उपयोग नई खोज के लिए करता है। उसने ऐसी औषधियों का पता लगाया जिनसे करोड़ों व्यक्तियों के प्राण  बच गए। दूसरी तरफ, परमाणु अस्त्रों की भी खोज की, जिससे इस पृथ्वी का ही अस्तित्व खतरे में पड़ गया। व्यापारी अपनी  बुद्धि व्यवसाय में लगाता है, लेकिन औद्योगिक विकास के साथ-साथ वह शोषण के तरीके भी सोचता है। राजनीतिज्ञ एक ओर प्रजा-पालन की बात सोचता है, तो दूसरी ओर अपने विरोधियों के खात्मे का। इस प्रकार, मन की गति दोनों दिशाओं में होती है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने ध्यान को अध्यात्म के साथ जोड़ा। 
 
मानव शरीर में कुछ ऐसे केन्द्र हैं, जो चेतना के विभिन्न स्तरों को प्रकट करते हैं। जब मन नीचे के केन्द्रों पर अधिष्ठित होता है, तो क्रोध, भय, ईर्ष्या आदि विचार घेर लेते हैं। शरीर अस्वस्थ रहने लगता है और मन अशांत। पर जब उन केन्द्रों को छोड़कर ऊपर की भूमिकाओं में पहुंचता है, तब जीवन के शक्तिशाली तत्वों के साथ संबंध जुड़ जाता है। सौंदर्य, प्रेम आदि सात्विक गुणों की अभिव्यक्ति होने लगती है।
 
विचार तथा व्यवहार में एकसूत्रता आ जाती है। इससे सच्ची शक्ति प्राप्त होती है। व्रत, नियम, उपवास आदि सभी माध्यम हैं हमारे भीतर सकारात्मक सोच लाने के। 
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