कहीं भूलवश आप अपना लोक और परलोक दोनों बिगाड़ तो नहीं रहे

Thursday, Aug 06, 2015 - 09:18 AM (IST)

सारा संसार जैसे एक तरह की अशांति से परेशान है। सब कुछ होते हुए भी अभाव का भाव लोगों के मन में बढ़ता ही जा रहा है। इंसान के जीवन में जो संगीत सुनाई पडऩा चाहिए, वह सुनाई नहीं दे रहा है। चारों ओर कोलाहल हो रहा है। आदमी प्रयास तो शांति पाने का कर रहा है लेकिन अशांति उसे छोड़ नहीं रही।
 
यह बात हमेशा ध्यान रखने की है कि मन की शांति सांसारिक चीजों से नहीं, वरन संतों और गुरु की शरण में मिलेगी। उनकी वाणी में ही ऐसी शक्ति है कि उनके सम्पर्क में आने पर मन में संवादिता का स्वर फूटने लगता है। जीव की परम सम्पत्ति सत्संग ही है। परमार्थ की ओर बढऩे का पहला कदम है साधना। दूसरे के काम को जो साधे, वही साधना।
 

सत्य बड़ा सरल होता है लेकिन सरल सत्य को समझने के लिए मनुष्य को भी सरल होना पड़ता है। धर्म को साधने के लिए ही यह शरीर मिला है इसलिए हम दूसरे के हित में लगें और उसी का ही चिंतन करें, यही धर्म है। इसी में धर्म और मानव जीवन की सार्थकता है। हमारा छोटा-सा स्वार्थ राष्ट्र और समाज को नुक्सान पहुंचा रहा है। हर इंसान आज किसी न किसी स्वार्थ में जी रहा है। इससे वह अपना यह लोक और परलोक दोनों बिगाड़ रहा है।  

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