पंरपरा: दूल्हे को घोड़े की बजाय घोड़ी पर ही क्यों बैठाते हैं?

Wednesday, Aug 05, 2015 - 04:23 PM (IST)

हिंदू धर्म में जब भी कोई बारात जाती है तो दुल्हा घोड़ी पर बैठ कर अपनी जीवन संगिनी को लेने जाता है। बहनों और भाभीयों के बहुत से शगुन करने के उपरांत ही घोड़ी दुल्हे को लेकर आगे बढ़ती है। क्या आपके मन में कभी विचार आया है की दुल्हा घोड़ी पर ही क्यों बैठता है? घोड़े या अन्य किसी सवारी पर क्यों नहीं? 

प्राचीनकाल में जब शादियां होती थी तो उस समय दुल्हन के लिए अथवा अपनी वीरता का प्रदर्शन करने के लिए लड़ाईयां लड़ी जाती थी। शास्त्रों में ऐसे बहुत से प्रसंग विद्यमान हैं। जब दुल्हे को दुल्हन के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी। 

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रामायण के अनुसार जब सीता माता का स्वयंवर हो रहा था तो वहां उपस्थित सभी राजाओं ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा लिया लेकिन धनुष को उठाना तो दूर कोई उसे हिला भी नहीं पाया। जब श्रीराम ने धुनष को तोड़ा और सीता माता वरमाला डालने के लिए उनकी ओर बढ़ी तभी राजाओं ने अपनी-अपनी तलवारें निकाल ली श्रीराम भी उनसे युद्ध करने को तत्पर हुए तभी परशुराम जी के आगमन से सभी को ज्ञात हुआ की श्रीराम से युद्ध करना मृत्यु को बुलाना है। 

अन्य प्रसंग में जब भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह देवी रुकमणि से हुआ तो उस वक्त भी युद्ध हुआ था। शायद इन्हीं कारणों से दूल्हे घोड़े पर बैठकर शादी के लिए जाते थे। उस समय में घोड़े को वीरता और शौर्य का प्रतिक माना जाता था क्योंकि जंग में घोड़े विशेष भूमिका निभाते थे। बदलते दौर के साथ स्वयंवर, लड़ाईयों और युद्ध पर विराम लग गया।  आधुनिक जीवनशैली में रचे-बसे लोग घोड़ी को शगुन का प्रतीक मान दुल्हे को उस पर बैठाने लगे।

कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार घोड़ी बुद्धिमान, दक्ष और चालाक जानवर है। इस पर केवल स्वस्थ व्यक्ति ही सवार हो सकता है। घोड़ी की बाग-डोर को संभाल कर रखना इस बात का प्रतीक है की दुल्हा परिवार की डोर को संभाल कर रख सकता है। 

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