फल को सोचकर कर्म करना अज्ञान

Sunday, Apr 19, 2015 - 09:43 AM (IST)

जिस तरह अज्ञानी कर्म में आसक्त होकर काम करता है उसी तरह विद्वान भी अनासक्त होकर जीवन बिताने के लिए कर्म करें। एक बार एक साधु नदी में डूबते हुए बिच्छू को बचाने की कोशिश कर रहे थे। साधु ने बिच्छू को उठाया तो बिच्छू ने डंक मारा और हाथ से छूट कर वह पानी में गिर गया। साधु फिर उसको बचाने के लिए बाहर निकालने लगे, बिच्छू ने फिर डंक मारा और नदी में गिर गया। बार-बार ऐसा होते देख साधु के शिष्यों ने उनसे कहा कि आपको जहर चढ़ जाएगा। साधु बोले, ‘‘जब बिच्छू अपना काटने का स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं बचाने का स्वभाव क्यों छोड़ूं?’’ 

ऐसे ही जब अज्ञानी कर्म को लेकर मोह और अहंकार का स्वभाव नहीं छोड़ते तो ज्ञानी को बिना कर्म में रमे प्रेम का भाव नहीं छोडऩा चाहिए। जैसे बुरा व्यक्ति अपनी बुराई नहीं छोड़ता वैसे ही अच्छे व्यक्ति को अपनी अच्छाई नहीं छोडऩी चाहिए। जिसको आत्मा का ज्ञान है वह ज्ञानी और जिसे अपना ही ज्ञान नहीं वह सारी दुनिया का ज्ञान होने पर भी अज्ञानी ही कहा जाएगा। अधिकतर मनुष्य अज्ञानी होते हैं और फल के बारे में सोच कर ही कर्म करते रहते हैं। जैसे अज्ञानी कर्म में लगा रहता है वैसे ही विद्वान को भी चाहिए कि वह फल की चिंता किए बिना कर्म करता रहे और दूसरों का हित करते हुए आगे बढ़ता रहे।

 

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