सागर की तरह निष्फल क्यों है जीवन

Sunday, Mar 01, 2015 - 10:41 AM (IST)

एक व्यापारी अपनी घोड़ागाड़ी से पास के किसी शहर में जा रहा था । प्रचंड गर्मी के दिन थे। उसे प्यास लगी । आगे का रास्ता एक समुद्र से होकर गुजरता था। समुद्र दिखाई देने पर उसने कोचवान को रोका और प्यास बुझाने के लिए अथाह समुद्र की ओर दौड़ पड़ा। किनारे पर बैठ उसने अंजुरि में पानी लिया और मुंह में डाला ही था कि दूसरी ओर मुंह बिगाड़ते हुए उगल दिया । वह सोचने लगा कि नदियां सागर से छोटी होती हैं, किन्तु उनका पानी मीठा होता है । सागर नदी से कहीं ज्यादा विशाल है, पर पानी खारा है । वह निराश होकर गाड़ी की ओर चलने ही वाला था कि एक आवाज सुनकर ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया ।

समुद्र पार से आई आवाज में उसे सुनाई दिया  ‘‘नदियां जो भी जल प्रकृति से पाती हैं उसका अधिकांश वे बांटती रहती हैं किन्तु सागर सब अपने में ही समेटे रखने की प्रवृत्ति रखता है । जो दूसरों के काम न आए उसका जीवन भी इसी सागर की तरह निष्फल है ।’’ व्यापारी समुद्र किनारे से प्यासा तो लौट गया किन्तु अपने साथ वह बहुमूल्य ज्ञान भी लेता गया, जिसने उसकी आत्मा को तृप्त कर दिया । तभी से वह दूसरों के लिए कुछ करने की सोचने लगा। उसके परोपकारी कार्यों ने उसे अधिक खुशहाल बना दिया ।

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