रक्षा उपाय: कलावा (मौली) बांधने के पीछे का साइंटिफिक लॉजिक

punjabkesari.in Wednesday, Aug 03, 2016 - 01:12 PM (IST)

भारतीय संस्कृति में कलावा यानि मौली बांधने का अत्यधिक महत्व है। सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलावा बांधने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पुराणों के अनुसार, पुरुषों एवं कुंवारी कन्याओं की दाईं कलाई में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित महिलाओं की बाईं कलाई में कलावा बांधने का नियम है। इसे बांधने के पीछे न केवल आध्यात्मिक कारण हैं बल्कि साइंटिफिक लॉजिक भी है।

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रक्षा के लिए सर्व सुलभ कच्चे सूत का बना लाल-पीला धागा, जिसे कलावा या मौली कहते हैं, काम में लिया जाता है। लाल रंग ताकत या शक्ति का प्रतीक व पीला रंग ज्ञान का प्रतीक है। हम मौली बांधकर, रक्षा करने की वचनबद्धता तो लेते ही हैं साथ ही उन्हें शक्तिवान, सामर्थ्यवान और ज्ञानवान होने की शुभकामनाएं व आशीर्वाद भी देते हैं।

 

शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण कलाई में होता है। मान्यता है कि कलावा बांधने से ब्‍लड प्रेशर, हार्ट डिसीज, डाइबिटीज और लकवा जैसे गंभीर रोगों पर नियंत्रण किया जा सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं की कलावा कलाई में बांधने से शरीर में वात, पित्‍त तथा कफ से मुक्‍ित मिलती है, रक्त संचार भी कंट्रोल में रहता है।  


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