इस तरह धनी व्यक्ति कर लेता है अपना ही नुक्सान

Sunday, Sep 13, 2015 - 11:43 AM (IST)

दानार्थिनो मधुकरा यदि कर्णतालैर् दूरीकृता: करिवरेण मदान्धबुद्धया।

तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषा, भृङ्गा: पुनर्विकचपद्मवने वसन्ति।।

अर्थ : अपने मद से अंधा हुआ गजराज (हाथी) यदि अपनी मंदबुद्धि के कारण, अपने गन्डस्थल (मस्तक) पर बहते मद को पानी के इच्छुक भौरों को, अपने कानों को फडफ़ड़ाकर भगा देता है तो इसमें भौरों की क्या हानि हुई? अर्थात कोई हानि नहीं हुई। वहां से हट कर वे खिले हुए कमलों का सहारा ले लेते हैं और उन्हें वहां पराग रस भी प्राप्त हो जाता है, परन्तु भौरों के न रहने से हाथी के गंडस्थल की शोभा नष्ट हो जाती है।

भावार्थ : यदि कोई विद्वान किसी धनी व्यक्ति के पास आस लेकर जाए और वह उसे भगा दे तो धनी की शोभा ही नष्ट होती है। गुणी व्यक्ति के लिए तो सारा संसार है, पर धनी व्यक्ति के घर विद्वान पधारे, यह कोई जरूरी नहीं। 

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