चाणक्य नीति सूत्र: सुखी-समृद्ध एवं खुशहाल जीवन का है ये राज

Tuesday, Oct 27, 2015 - 11:07 AM (IST)

राज्यमूलमिन्द्रियजय:। 
राज्य का आधार अपनी इंद्रियों पर विजय पाना है। जो राजा राजपद ग्रहण करने के उपरांत अपनी समस्त दस इंद्रियों पर संयम रखना सीख लेता है, उसके राज्य में कभी विद्रोह नहीं होता। ऐसा राजा अपने आचरण से अपने अधीन समस्त राजकर्मचारियों तथा प्रजा को संयम रखने का पाठ पढ़ा सकता है। राजकर्मचारी और प्रजा के मध्य मधुर सामंजस्य स्थापित करा सकता है। ऐसी स्थिति में राज्य खुशहाल रहता है।
 
प्रकृति सम्पदा ह्यनायकमपि राज्य नीयते। 
प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के सम्पन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
 
जिस राज्य की प्रजा सुखी होगी, सम्पन्न होगी, वहां यदि किसी समय, कुछ काल के लिए राजा अथवा नेता न भी रहे तो राज-काज में किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं होती। कष्टविहीन राजकर्मचारी और सुखी प्रजा उस आपातकाल में राज्य पर आंच नहीं आने देते। अत: राजा का प्रथम कर्तव्य अपनी प्रजा को सुख-समृद्धि से सम्पन्न बनाना होना चाहिए।
 
जिस तरह चाणक्य जी ने अपनी इस नीति में अच्छे राजा के कर्तव्य पर प्रकाश डाला है उसी तरह घर के मुखिया को भी अपना परिवार सुखी-समृद्ध एवं सम्पन्न बनाए रखने के लिए इस नीति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए जिससे उनका घर सदा खुशहाल रह सके।

 

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