स्त्रियों और धन के विषय में आचार्य चाणक्य के विचारों को जरूर Follow करें

Friday, Jan 22, 2016 - 12:18 PM (IST)

मातृवत् परदारांश्चय परद्रव्याणि लोष्ठवत्।

आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति स नरः।।

अर्थात: पराई स्त्रियों को माता के समान और दूसरों के धन को मिट्टी का ढेला समझना चाहिए। विश्व में वही सच्चा मनुष्य है जो सभी जीवो को अपनी आत्मा की तरह देखने वाला मानता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं पुरूषों को पराई स्त्रीयों को माता के समान आदर देना चाहिए। किसी दूसरे की स्त्री पर मोहीत होने वाले पुरूष का पतन बहुत शीघ्र हो जाता है।

जो धन स्वयं परिश्रम से कमाया गया हो वही धन अपना होता है। दूसरे का धन तो उस मिट्टी के ढेले की तरह है जिसका हमारे लिए कोई लाभ नहीं है। 

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