चाणक्य के अनुभव से जानिए, ये लोग कभी नहीं निभाते जीवन में साथ

Monday, Sep 21, 2015 - 09:07 AM (IST)

राजा वेश्या यमो ह्यग्निस्तकरो बालयाचको।

पर दु:खं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकंटका:।।

अर्थ : राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, बालक, भिक्षु, और आठों गांव का कांटा, ये दूसरे के दुख को नहीं जानते।। (19)।।

भावार्थ : अग्नि जड़ पदार्थ है, वह तो किसी के दुख-सुख को जान ही नहीं सकता। शेष चेतन भी दूसरों के दुख को न जानकर अपने ही घर को भरने का प्रयत्न करते हैं। राजा जनता को पीड़ित करके भी अपना कोष भरना चाहता है। वेश्या को धन चाहिए। 

यमराज प्राणियों को समय आने पर दूसरी योनियों में भेज देता है चाहे परिवार वालों को कितना ही कष्ट हो। चोर को अपनी चोरी से मतलब है, बाल हठ प्रसिद्धि ही है, वह इस बात को नहीं सोचता कि किसका नुक्सान होता है। याचक भी अपना ही स्वार्थ सोचता है और ग्राम कंटक का तो निर्वाह ही ग्रामवासियों को पीड़ा देकर होता है। वह इस बात का आभास नहीं करता कि अपने स्वार्थ के लिए वह लोगों को कष्ट दे रहा है।

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