बस एक छोटी सी गलती और मनुष्य बन जाता है पशु

Sunday, Sep 06, 2015 - 09:37 AM (IST)

आहरनिद्रामय मैथुननानि, समानि चैतानि नृणा पशूनाम।

ज्ञानपं नराणामधिको विशेषो ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:।। 

अर्थ : भोजन, नींद, डर, संभोग आदि, ये वृत्ति (गुण) मनुष्य और पशुओं में समान रूप से पाई जाती हैं। पशुओं की अपेक्षा मनुष्यों में केवल ज्ञान (बुद्धि) एक विशेष गुण, उसे अलग से प्राप्त है। अत: ज्ञान के बिना मनुष्य पशु ही होता है।।17।।

भावार्थ : आचार्य चाणक्य ने प्रस्तुत श्लोक में मनुष्य के पशु से अलग होने का जो गुण बताया है वह है उसकी ज्ञानशक्ति। ज्ञान से मनुष्य उन्नत होता है। ज्ञान से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। ज्ञान द्वारा ही मनुष्य के नैतिक गुणों का विकास होता है। जिस मनुष्य ने नैतिक गुणों को विकसित कर लिया, उसका ही मनुष्य रूप में जीवन लेना सफल रहा।

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