हमेशा दूसरों की निंदा करते हैं दुष्ट

Wednesday, Jul 01, 2015 - 10:50 AM (IST)

दह्यमाना: सुतीव्रेण नीचा: परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।


भावार्थ : नीच मनुष्य दूसरों की यशस्वी अग्रि की तेजी से जलते हैं और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते हैं।।10।। 

दूसरों की निंदा सदैव दुष्ट व्यक्ति ही किया करते हैं । वे दूसरों के यश को देख कर सदैव ईर्ष्या से जलते रहते हैं ।

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