भोजन हमेशा प्रसन्नमुख तथा शांतभाव से करें

Tuesday, Jun 30, 2015 - 11:02 AM (IST)

यस्तु संवत्सर पूर्ण नित्यं मौनेन भुंजति।
युगकोटिसहस्रं तु: स्वर्गलोके महीयते।।


व्याख्या : जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत्-भर मौन रह कर भोजन करते हैं, वे हजारों-करोड़ों युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते हैं अर्थात जो व्यक्ति संतोष के साथ जो मिले उसी पर संतुष्ट रहता है, उसे पृथ्वी पर ही स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। उसे न तो कोई दुख होता है और न ही कोई कष्ट। आचार्य चाणक्य के कहने का तात्पर्य यह है कि भोजन प्रसन्नमुख तथा शांतभाव से करना चाहिए। 

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