मधुर वचन और सज्जनों की संगति

Sunday, May 31, 2015 - 08:24 AM (IST)

संसार कटु विषवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे।
सुभाषितं च सुस्वादु संगति सुजने जने।।

अर्थ : इस संसार रूपी विष-वृक्ष पर दो अमृत के समान मीठे फल लगते हैं । एक मधुर और दूसरा सत्संगति । मधुर बोलने और अच्छे लोगों की संगति करने से विष-वृक्ष का प्रभाव नष्ट हो जाता है और उसका कल्याण हो जाता है।।18।।

भावार्थ : आचार्य चाणक्य ने उपरोक्त श्लोक के माध्यम से संसार को कटु वृक्ष कहा है। इसे विष वृक्ष भी कहते हैं। इस कटु वृक्ष के दो फल कड़वे न होकर अत्यंत मीठे हैं, अमृत के समान गुणकारी हैं-मधुर वचन और सज्जनों की संगति । मनुष्य को चाहिए कि सदा मीठा ही बोलें।

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