गुणों का आश्रय जरूरी

Sunday, Apr 12, 2015 - 09:55 AM (IST)

गुणै: सर्वज्ञतुल्योऽपि सीदत्येको निराश्रय:।
अनघ्र्यमपि माणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते।।

अर्थ : जो व्यक्ति किसी गुणी व्यक्ति का आश्रित नहीं है वह व्यक्ति ईश्वरीय गुणों से युक्त होने पर भी कष्ट झेलता है, जैसे अनमोल श्रेष्ठ मणि को भी सुवर्ण की जरूरत होती है । अर्थात सोने में जड़े जाने के उपरांत ही उसकी शोभा में चार चांद लग जाते हैं।। 10।।

भावार्थ : किसी का आश्रय प्राप्त करके गुणी व्यक्ति अपने गुणों को समाज में स्थापित करने का अवसर प्राप्त कर लेता है, तभी उसे उचित यश और प्रसिद्धि प्राप्त होती है।

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