कुलीन के गुण

Sunday, Feb 22, 2015 - 03:25 PM (IST)

छिन्नोऽपि चन्दनतरुर्न जहाति गन्धम्।,
वृद्धोऽपि वारणपतिर्न जहाति लीलाम्।
यन्त्रार्पितो मधुरतां न जहाति चेक्षु:,
क्षीणोऽपि न त्यजति शीलगुणान् कुलीन:।।

अर्थ : चन्दन का कटा हुआ वृक्ष भी सुगंध नहीं छोड़ता, बूढ़ा होने पर भी गजराज क्रीड़ा नहीं छोड़ता, ईख कोल्हू में पिसने के बाद भी अपनी मिठास नहीं छोड़ती और कुलीन व्यक्ति दरिद्र होने पर भी सुशीलता आदि गुणों को नहीं छोड़ता ।

भावार्थ : भाव यह है कि जन्म से ही जो शाश्वत गुण मनुष्य को प्राप्त होते हैं, वे अंत तक साथ नहीं छोड़ते।

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