चाणक्य नीति

punjabkesari.in Sunday, Feb 01, 2015 - 10:00 AM (IST)

अयममृतनिधानं नायकोऽप्यपौषधीनां,
कमलासहजात: कान्तियुक्तोऽपि चन्द्र:।
भवति विगतरश्मिर्मण्डलं प्राप्य भानो:,
परसदननिविष्ट: को लघुत्वं न याति।।

अर्थ :पराए घर में रहने से कौन छोटा नहीं हो जाता ? यह देखो अमृत का खजाना,औषधियों का स्वामी,शरीर और शोभा से युक्त यह चंद्रमा,जब सूर्य के प्रभा-मंडल में आता है तो प्रकाशहीन हो जाता है।।14।।

भावार्थ : दूसरों की पराधीनता में जाने से आदमी का स्वाभिमान नष्ट हो जाता है।


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