जीने की आस छोड़ चुकी थी मनजीत, नन्ही परी ने पूरा किया मनजीत का सपना

Saturday, Feb 24, 2018 - 08:43 AM (IST)

चंडीगढ़ (पाल): तीन साल पहले ब्रेन डैड मरीज से मिले ओर्गन की बदौलत मनजीत को न सिर्फ नया जीवन मिला बल्कि उसी ब्रेन डैड मरीज के कारण आज वह मां बन पाई है। मां बनना तो दूर की बात, मनजीत अपनी जिंदगी के उस दौर से गुजर रही थी कि उसने जीने की आस भी छोड़ दी थी। 30 साल की उम्र से पहले ही लिवर सिरोसिस के कारण उसका लिवर पूरी तरह खराब हो चुका था। 

 

उसने मनजीत के मां बनने के सपने को भी रोक दिया था। 5 से 6 साल से दवाइयां तो चल रही थीं लेकिन सिरोसिस का ट्रांसप्लांट ही एकमात्र इलाज था। ऐसे में अचानक मिले किसी ब्रेन डैड मरीज के लिवर को मनजीत में ट्रांसप्लांट कर दिया गया। 


ट्रांसप्लांट के बाद नया जीवन तो मिला लेकिन हर औरत की तरह मातृत्व सुख शायद नहीं था। कहते हैं जो चीज नसीब में होती है भगवान भी उसे वापस नहीं ले सकता। ऊपर वाले की मेहर ही थी कि ट्रांसप्लांट के तीन साल बाद पिछले साल ही मनजीत प्रैग्रैंट है। 

 

नन्ही परी ने पूरा किया मनजीत का सपना
किसी भी ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को दवाओं के सहारा उम्र भर रहता है मेरी भी यही चिंता थी कि कहीं इन दवाओं का असर मेरे होने वाले बच्चे पर न पड़े। पी.जी.आई. हैप्टोलॉजी विभाग के हैड प्रो आर.के. धीमान की माने तो ट्रांसप्लांट के बाद दवाएं इम्यूनो सपरेरिस काफी जरूरी है लेकिन मनजीत के केस में उसकी उम्र उसके लिए काफी फायदे में रही। 

 

कम उम्र होने के कारण रिस्क फैक्टर तो कम हो गए थे। वहीं सबसे खास बात यह है कि अगर महिलाओं में प्रजनन उम्र में ट्रांसप्लांट हो तो बच्चे पैदा करने की क्षमता वापिस आ जाती है। 

 

आजकल जो नई इम्यूनो सपरेसिस की दवाइयां आ रही है वह रोधक क्षमता को कम करने के साथ ही प्रेग्नैंसी वाले मामले में आऊटकम अच्छा आता है जिससे बच्चे को किसी भी तरह का इंफैक्शन का खतरा नहीं होता। हैपेटोलजिस्ट और ट्रैंड पी.जी.आई. सर्जन की देख-रेख में 21 फरवरी को मनजीत ने सिजेरियन के जरिए एक बच्ची को जन्म दिया है। 


गर्व की बात 
पी.जी.आई. में इस तरह का पहला मामला है कि ट्रांसप्लांट के बाद किसी महिला ने बच्चे को जन्म दिया हो। संस्थान के लिए काफी गर्व की बात है। इस पूरी प्रक्रिया में पी.जी.आई. डाक्टरों की काफी मेहनत रही है इसमें अलग अलग विभागों का काफी सहयोग रहा है-प्रो. जगत राम, डायरैक्टर, पी.जी.आई. 

 

तीन विभागों का सहयोग 
मनजीत का केस काफी रिस्की था। किसी भी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए बकायदा कई डाक्टर्स व विभागों की देख-रेख रही। इसमें हैपेटोलॉजी विभाग के प्रो.आर.के. धीमान, प्रो.अजय दुसेजा, डा. सुनील तनेजा, डीन पल्मनरी विभाग के डा. बहरा, लिवर ट्रांसप्लाट यूनिट से प्रो. एल. कमन, डा. दिव्या दहिया, गायनी विभाग से हैड प्रो. वनिता सूरी व डा. पूजा शिखा शामिल थे।

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