तंबाकू नियंत्रण और डब्लूेएचओ- धुएं, सच और कोरी आशाओं का जाल : डॉ.किरण मेलकोटे
punjabkesari.in Monday, Mar 28, 2022 - 07:22 PM (IST)

तंबाकू नियंत्रण और डब्लूेएचओ- धुएं, सच और कोरी आशाओं का जाल : डॉ.किरण मेलकोटे
तंबाकू के खतरे व्यापक रूप से सभी को पता हैं और यह निर्विवाद हैं। अन्य जोखिम भरी आदतों के विपरीत, तंबाकू का सेवन करने का कोई सुरक्षित तरीका नहीं है। फिर भी, हम इसे खाते हैं। और केवल निकोटिन के लिये।इस बारे में विचार करें- निकोटिन के लिये सिगरेट पीना वैसा ही है जैसे पानी के लिये सीवेज (गंदे नाले) का पानी पीना। यह उसमें मौजूद है, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन निकोटीन और पानी को प्राप्ता करने के कई और सुरक्षित तरीके मौजूद हैं। - यहां स्वादिष्टे का उल्लेनख करना जरूरी नहीं है। डॉ.किरण मेलकोटे ने बताया कि गैर-संचार रोगों के बचाव एचं नियंत्रण के लिए डब्लूेएचओ के वैश्विक ऐक्शेन प्लानन 2013-2020 के तहत तय किये गये 2025 लक्ष्य में यह बताया गया है कि देशों को तंबाकू के इस्ते माल में 2010 के प्रचलित स्तर के आधार पर केवल 30% कमी लाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि 2010 के स्तरों की तुलना में 30% सापेक्ष कमी लाने का प्रयास करना चाहिए। सही शब्दों में कहा जाये तो यह सिर्फ 7% से भी कम की कमी है। हर साल (केवल भारत में 1.35 मिलियन) 8 मिलियन लोग तंबाकू की वजह से मरते हैं, ऐसे में उम्मीद से कम लक्ष्य हासिल करने वाले विश्व स्वास्थ संगठन और संबंधित तंबाकू नियंत्रण समूह खुद की पीठ थपथपाने के लिये दौड़ पड़ते हैं। भारत में अनुमानित तंबाकू उपयोगकर्ताओं की कुल संख्या 267मिलियन (26.7 करोड़) है। 7 वर्षों में अनुमानित रूप से 8.1 मिलियन (81 लाख) लोगों का तम्बाकू छोड़ देना बेहद उत्साहजनक है। आंकड़े इस तथ्य को नकारते हैं कि तंबाकू का उपयोग, विशेष रूप से पुरुषों द्वारा धूम्रपान, बढ़ रहा है और इसे जनसंख्या वृद्धि के रूप में समझाया गया है। समान रूप से, महिला उपयोगकर्ताओं में तेजी से गिरावट आई है और इससे कुल संख्या में कमी आई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता आपको बताएंगे कि महिला उपयोगकर्ताओं से तंबाकू जैसे वर्जित विषयों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है - कई संख्याएं अतिरिक्त हैं और कभी-कभी भ्रामक हो सकती हैं। क्या मुझे लगता है कि संख्याएं गलत हैं? - मैं उम्मीद करती हूं कि ऐसा ना हो, क्योंकि मैं तंबाकू छोड़ने वाले सभी लोगों के साथ हूं और यह जितना अधिक होगा उतना बेहतर होगा, लेकिन काश मैं ज्यादा आश्चस्त हो पाती। भारत में तंबाकू छोड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर, 90 से अधिक ऐसे लोग हैं जो ऐसा नहीं करते हैं। हालांकि, इसकी काफी संभावना है कि इन आकंड़ों में उन लोगों की संख्या शामिल नहीं की गई जो वर्षों से बीमारी और विकलांगता से ग्रसित हैं। 2045 तक ‘तंबाकू का अंत’ कोई नया विचार नहीं है, लेकिन – केवल प्रतिबंध लगाना काफी नहीं है! जाहिर है, हमने बाकी चीजों को सीखने से इनकार कर दिया है, चाहे इतिहास (यूएसए, शराब की अवैध बिक्री) हो या वर्तमान (गुजरात, शराब, भूटान, सिगरेट आदि)। इस समस्या को धुंधला कर उसकी जगह एक संपन्न अवैध बाजार विकसित कर दिया। भारत में ई-सिगरेट /एंड्स (निर्माता और बिक्री) पर प्रतिबंध शुरू से ही बर्बाद सा हो गया था। ऐसा करने से बिना किसी नियम या अधिनियम, उम्र की जांच, क्वालिटी की जांच और बिना किसी सुरक्षा के, हमने इस व्यापार को अंडरग्राउंड कर दिया। ई-सिगरेट अधिक हानिकारक सिगरेट को बंद करना प्रमाणित माना गया है, खासकर निकोटिन गम / लोज़ेंजेस / पैच की खराब सफलता दर को देखते हुए, जोकि धूम्रपान करने के व्यवहारिक पक्ष को नहीं देखता। हाल ही के एक लेख ने 1960 के दशक के जन शिक्षा अभियानों के लिये तंबाकू नियंत्रण के सभी लाभों को जिम्मेदार ठहराया और तब से अब तक की खराब प्रगति की व्याख्या करने के लिये घटते प्रतिफल के कानून का हवाला दिया।दुनिया भर में लोग खतरनाक तंबाकू उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं। यह सब सिर्फ निकोटिन के लिये है।लेकिन जैसा कि उल्लेखित है कि निकोटिन लेने के सुरक्षित तरीके हैं और अब समय आ गया है कि हम टोबेको हार्म रिडक्शन की क्षमता को पहचानें। यह सिर्फ जिंदगी बचाने के लिये नहीं, बल्कि बीमारियों के बोझ को कम करने, व्यक्ति के काम के खोये हुए घंटों और विकलांगता कम करने के लिये भी है। जैसे कि, लोगों की सेहत के शुद्ध लाभ के साथ स्वीडिश स्नूस ने स्वीडन में धूम्रपान को रिप्लेस कर दिया। हीटेड टोबेको प्रोडक्ट्स ने जापान में 30% तक सिगरेट की बिक्री में कमी ला दी थी। यूएसए में यूथ वैपिंग के आने से धूम्रपान की दर काफी कम हो गई और एवली घटना के बाद उसमें फिर तेजी आ गई, (सिगरेट की बिक्री तेज हो गई, वैपिंग कम हो गया, जिससे यह पता चलता है कि वैपिंग सही मायने में धूम्रपान का एक वास्तटविक विकल्प है।)। भारत में तंबाकू इस्तेमाल करने वाली बड़ी आबादी धूम्रपान करने वालों की तुलना में धुआंरहित तंबाकू पर आकर रुक गई है (गुटका, खैनी, आदि)। तंबाकू नियंत्रण का अकथनीय जोर मुख्य रूप से सिगरेट के ऊपर है। जैसे कि- हमारी आबादी का 21.4% धुआंरहित तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं, 7.7% बीड़ी पीते हैं और 4% सिगरेट पीते हैं। तंबाकू के नुकसान के एक स्पेक्ट्रम पर कुल लगभग 30% (बीड़ी और एसएलटी के बीच कुछ दोहरे उपयोग के साथ) के लिये, बीड़ी सबसे घातक है, भारतीय एसएलटी उससे थोड़े पीछे हैं। क्या सिगरेट पर यह अनुपातहीन ध्यान वास्तव में इस तथ्य के कारण है कि एसएलटी और बीड़ी, मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित, हाशिए पर, अदृश्य बहुमत द्वारा उपयोग किए जाते हैं? – यह एक अनुचित धारणा नहीं है।हार्म रिडक्शन द्वारा प्रदान किये गये अवसर गेम-चेंजर हो सकते हैं, खासकर एसएलटी इस्तेमाल करने वाले हमारे भाइयों के लिये- वे स्वास्थ्य की देखभाल या काम के घंटों का जो नुकसान हुआ है उसका खर्च वहन कर सकते हैं। बदकिस्मती की बात है कि हमारे देश मे उपलब्ध गम और लोज़ेंजेस, काफी महंगे हैं और अभी भी पहुंच से बाहर हैं।तंबाकू नियंत्रण संस्थान केवल “कैसे” पर ही ठहर गये हैं और “क्यों” वाला पक्ष उनकी नजरों से ओझल है - हमारा लक्ष्य एक है। आइये एक साथ मिलकर जिंदगियां बचायें और लोगों की सेहत बेहतर बनायें।