आज पूरी होगी भाजपा की जिद!

punjabkesari.in Monday, Sep 05, 2016 - 08:33 AM (IST)

चंडीगढ़ (नीरज): नगर निगम चुनाव-2016 से पहले शहर में वार्डों की संख्या बढ़ाने की जिद पर अड़ी भाजपा के आगे प्रशासन झुकेगा या तकनीकी कारणों का हवाला देकर मौजूदा 26 वार्डों पर ही निगम चुनाव करवाएगा, इसका फैसला सोमवार को हो जाएगा। इसके लिए प्रशासन के उच्चाधिकारियों की एक बैठक 5 सितम्बर को बुलाई गई है। इसमें राज्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता भी मौजूद रह सकते हैं। 

 
चंडीगढ़ नगर निगम क्षेत्र में पिछली वार्डबंदी 2006 में हुई थी। तब 2001 की जनगणना के आंकड़ों को इसका आधार बनाया गया था। 2006 की वार्डबंदी के हिसाब से ही 2006 और 2011 में नगर निगम चुनाव हुआ था। अब नई जनगणना 2011 में हुई और 2013 में इसके आंकड़े सामने आ गए थे। लिहाजा, 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से नई वार्डबंदी जरूरी हो गई। राज्य चुनाव आयोग ने 2013 में ही प्रशासन को नई वार्डबंदी के लिए पत्र लिख दिया था। 
 
इसके बाद तीन साल से लगातार कई पत्र भेजे जाने के बावजूद प्रशासन ने न तो राज्य चुनाव आयोग के सामने नई वार्डबंदी को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया और न ही नई वार्डबंदी पर कोई ठोस फैसला किया। अब जब नगर निगम चुनाव-2016 में सिर्फ तीन महीने शेष रह गए हैं तो राज्य चुनाव आयुक्त राकेश मेहता ने गत 2 अगस्त को चंडीगढ़ पहुंचकर प्रशासन को नई वार्डबंदी पर फैसला करने के लिए 1 सितम्बर तक का समय दिया था। यह अवधि भी निकल चुकी है लेकिन प्रशासन ने नई वार्डबंदी पर कोई फैसला नहीं किया।
 
भाजपा का है दबाव
नई वार्डबंदी को लेकर तीन साल से प्रशासन राजनीतिक दबाव से पसोपेश में है। नई जनगणना के आंकड़े 2013 में जब सामने आए तो शहर में कांग्रेस का सांसद और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। प्रशासन 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद बनने वाले सियासी हालात पर नजर लगाए हुए था। लोकसभा चुनाव में स्थिति बदली और चंडीगढ़ में भाजपा का सांसद और केंद्र में भाजपा की सरकार बन गई तो प्रशासन की दुविधा बढ़ गई। क्योंकि कांग्रेस बचे हुए गांवों को निगम में शामिल करने के पक्ष में थी, जबकि भाजपा इसके खिलाफ है।
 
नई वार्डबंदी में फंसे कई पेंच
नई वार्डबंदी में कई पेंच भी फंसे हुए हैं। बचे हुए गांव निगम में शामिल न भी किए जाएं तो पिछले दिनों दो कालोनियों को उठाकर मौजूदा वार्डों में पुनर्वासित किए गए लोगों का क्या होगा, स्पष्ट नहीं है। वह निगम चुनाव में वोट डाल पाएं, इसके लिए उनके क्षेत्र को निगम में शामिल करना होगा लेकिन इसके लिए अब इतना समय नहीं बचा है। 
 
ऐसे में भाजपा अपने चार वार्डों को रिजर्वेशन से निकालने के लिए चाहती है कि मौजूदा वार्डों को ही पुनर्गठित कर कुछ वार्ड बढ़ा दिए जाएं लेकिन इसके लिए प्रशासन को सैक्टरवाइज जनगणना आंकड़ा चाहिए, जबकि इस बार जनगणना विभाग ने सिर्फ वार्डवाइज आंकड़े तैयार किए हैं। 
 
सैक्टरवाइज आंकड़े जुटाने में समय लगेगा और दिसम्बर में होने वाले निगम चुनाव के मद्देनजर यह भी संभव नहीं दिख रहा है लेकिन भाजपा जिद पर अड़ी है। ऐसे में प्रशासन क्या रास्ता निकालेगा और क्या भाजपा की जिद पूरी हो पाएगी, यह सोमवार को होने वाली प्रशासन की उच्चस्तरीय बैठक के बाद स्पष्ट होगा।

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