15 दिन में खर्च दिए करोड़ों, अब भी शहर में जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर

Thursday, Oct 05, 2017 - 09:47 AM (IST)

चंडीगढ़ (राय): स्वच्छ भारत मिशन के तहत पिछले 15 दिनों में नगर निगम ने करोड़ों खर्च कर शहर की सफाई की मुहिम तो चलाई पर इसमें अहम योगदान देने वाले सफाई कर्मियों को सिर्फ धमकियां ही दी गई। शहर में आज भी जगह-जगह कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं। हालांकि निगम ने बड़े पैमाने पर यह अभियान शुरू किया था पर जितनी तैयारी की थी उसके मुताबिक अभियान सफल नहीं हो पाया। पूर्व पार्षद सङ्क्षतद्र सिंह द्वारा निगम सदन में पूछे गए सवाल पर बताया कि वर्ष 2009 से अब तक करीब 200 सफाई कर्मी ड्यूटी के दौरान मारे जा चुके हैं। 

 

इसके बावजूद भी गत 2 अक्तूबर तक चले सफाई पखवाड़े से पहले निगम ने उनके हित के लिए कोई योजना लाने अथवा उनकी लंबित मांगों पर विचार करने की बजाय उन्हें धमकियां ही दीं। ज्ञात रहे कि मेयर आशा जसवाल ने ना सिर्फ 3 सफाई कर्मियों को नौकरी से निकालने की सिफारिश की थी अपितु 25 नियमित सफाई कर्मियों को बर्खास्त करने की भी सिफारिश की थी। इस दौरान इनकी मागों पर विचार करने के लिए प्रशासन के गृह सचिव ने जो बैठक रखी उसे भी रद्द कर दिया गया। सफाई कर्मियों के नेताओं का कहना है कि वे काफी समय से मांगों के लिए संघर्षरत हैं पर अब उन्हें डर है कि अगर वह गेट मीटिंग भी करते हैं तो ठेके पर रखे सफाई कर्मियों पर गाज गिरती है।


 

शहरों की सफाई कर्मियों की बदौलत
नेताओं के मुताबिक शहर को अगर देश के सबसे स्वच्छ शहरों में गिना जा रहा है तो वह सफाई कर्मियों की बदौलत ही है पर वर्तमान पार्षद उन पर आरोप लगाते हैं कि वे काम नहीं करते। इनका कहना था कि गंदी सड़कों की सफाई से लेकर फुटपाथ और नालों की सफाई करना, कचरा इक_ा करने से लेकर कचरे के ट्रक को कूड़ा फैंकने वाली जगह तक लाना आदि-आदि सफाई से जुड़ी कोई गतिविधि नहीं जिसमें सफाई कर्मी योगदान नहीं देते। यहां तक कि उन्हें अधिकारियों के घरों में भी सफाई के लिए लगाया जाता है। इसके बावजूद भी स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर को साफ करने की श्रेय मेयर, पार्षद व अधिकारियों को मिलता है। 

 

सुरक्षा उपकरणों की कमी पड़ती है जान पर भारी
इन नेताओं ने कहा कि ज्यादातर सफाई कर्मियों की मौत हादसे के कारण होती है। इसकी मुख्य वजह ड्यूटी के समय कर्मचारियों को दिए जाने वाले सुरक्षा उपकरणों की कमी और सुरक्षा संबंधी मानक मानने में निगम द्वारा बरती गई लापरवाही है। निगम ने अब तक इससे संबंधित न कोई जांच करवाई है न ही इसके कारण जानने के लिए कोई अध्ययन करवाया है। यहां तक कि इनके पारिवारिक के सदस्यों को अनुकंपा के आधार पर नियमित नौकरी तक देने की इनकी मांग नहीं मानी गई।


 

दमा और टी.बी. से मरने वाले कर्मचारियों की तादाद ज्यादा
सफाई कर्मियों के नेताओं का कहना था कि जिस दिन की हड़ताल के लिए उन्हें प्रताडऩा मिली उस दिन भी वह अपने एक मृतक कर्मी के अंतिम संस्कार के लिए निगम द्वारा दी जाने वाली राशि की मांग को लेकर निगमायुक्त के कार्यालय में थे। निगम ने तो नहीं सुनी व उसका संस्कार भी देर शाम हो पाया। अधिकांश मौतें दिल संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। दमा और टी.बी. से मरने वाले कर्मचारियों की तादाद काफी ज्यादा है। इनमें से ज्यादातर की मौत ड्यूटी के दौरान ही होती है। मरने वालों में अधिकतर युवा हैं। स्वच्छता अभियान के नाम पर निगम ने लाखों के तो झाड़ू ही खरीद लिए। इससे तो उन्हें सुरक्षा संबंधी उपकरण दे देते तो अच्छे से साफ हो जाता। 


 

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